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जेन तीथं : २४५
"दसश्रावक चरित्र" की १२१८ ई० में लिखित एक प्रशस्ति से ज्ञात होता है कि यह मन्दिर क्षेमंधर के पुत्र जगधर ने निर्मित करवाया । १२६८ ई० में यहीं के नेमिकुमार और गणदेव नामक धनी श्रेष्ठियों ने पार्श्वनाथ मन्दिर के निमित्त जिनेश्वर सूरि द्वारा स्थापित करवाने के लिये, स्वर्ण कलश बनवाये । १२८७ ई० में जिनप्रबोध सूरि के नगर आगमन पर राजा कर्णदेव एवं अन्य राज्याधिकारियों ने उनका भव्य स्वागत किया तथा चातुर्मास वहीं व्यतीत करने की अनुनय की । इस समय नेमिकुमार और गणधर ने इस मन्दिर में चौबीसी, जिन मन्दिर एवं अष्टापद की प्रतिमाएं स्थापित करवाई। इस अवसर पर कुछ मुनियों को भी दीक्षित किया गया । १४१६ ई० में आचार्य जिनराज के उपदेश से लक्ष्मण सिंह के राज्यकाल में इस मन्दिर का जीर्णोद्धार एवं पुनः निर्माण किया गया और लोद्रवा से लाई गई पार्श्वनाथ की मूर्ति यहाँ स्थापित की गई तब इस मन्दिर का नाम "लक्ष्मण-विहार रखा गया। इसका निर्माण १४०२ ई० में शुरू किया गया था, जो लगभग १४ वर्ष तक चला और १४१६ ई० में पूर्ण हुआ । साधु कीर्तिराज ने इसकी प्रशस्ति की रचना की और वाचक जयसागर गणि ने इसे संशोधित किया तथा कारीगर धन्ना ने इसे उत्कीर्ण किया। ओसवालवंशीय, रांका गोत्र के सेठ चोले साह, सेठ नरसिंह व भोजे साह जयसिंह ने मन्दिर को बनवाया । १४३६ ई० के अभिलेख से ज्ञात होता है कि कतिपय श्रावकों के द्वारा सुपार्श्वनाथ की प्रतिमा की स्थापना करवाई गई।
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जैसलमेर के जैन मन्दिर, गुजरात के सोलंकी व बघेला मन्दिरों के स्थापत्य से पूर्णतया प्रभावित हैं । जगती, गर्भगृह, मुख मंडप, गूढ मंडप, रंग मंडप, स्तम्भों व शिखर आदि में यहां सोलंकी व बघेला मन्दिरों का स्पष्ट अनुकरण दृष्टिगत होता है । पार्श्वनाथ मन्दिर अपने स्थापत्य एवं मूर्तिकला के लिये प्रसिद्ध है अपनी " जैसलमेर चैत्य परिपाटी" में मन्दिर की बिम्ब संख्या ९१० -वृद्धिरत्न ने " वृद्धिरत्न माला" में मूर्ति संख्या १२५२ के तोरण पर सुन्दर मूर्तियाँ, वादक, वादनियों की नृत्य मुखाकृतियाँ, बेलबूटों का अंकन व दोनों पार्श्वो में देवी-देवताओं की भैरव मुख्य हैं । तोरण के उच्च शिखर पर ठीक मध्य में ध्यानस्थ
जिनसुख सूरि ने बताई है, जबकि
लिखी है । मन्दिर के मुख्य द्वार मुद्रायें, हाथी, सिंह व घोड़े की
मूर्तियाँ हैं, जिनमें
पार्श्वनाथ की मूर्ति
१. खबुगु, पृ० ३४ ।
२. वही, पृ० ५२ ।
३. वही, पृ० ५८ ।
४. " श्री लक्ष्मण विहारोऽयमिति विख्यातो जिनालयः " पार्श्वनाथ मन्दिर का लेख ।
५. नाजैलेस, क्र० २११४ ।
६. अग्रवाल, हिस्ट्री ऑफ आर्ट एण्ड आर्किटेक्चर ऑफ जैसलमेर, पृ० ३९ ।
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