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२४४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म कोरनी का सुन्दर काम करके अप्रतिम जालियों, झरोखों एवं कला वैभव का सृजन किया है।
जैसलमेर पंचतीर्थी श्वेताम्बर जैन सम्प्रदाय का बहुत बड़ा तीर्थ है। जिस प्रकार हिन्दुओं के लिये बद्रिकाश्रम एवं पुष्कर की यात्रा धार्मिक दृष्टि से महत्त्व की है, उसी प्रकार जैनियों के लिये धार्मिक उद्देश्यों की पूर्ति के हेतु लुद्रवा और जैसलमेर की यात्रा करना नितान्त आवश्यक है।' कविवर समय सुन्दर ने अपनी तीर्थमाला में विभिन्न तीर्थ स्थानों के साथ जैसलमेर की महत्ता को भी प्रकट किया है
"जैसलमेर जुहारिये, दुःख वारिये रे,
"अरिहंत बिम्ब अनेक, तीरथ ते नमूरे ।" जैसलमेर दुर्ग व शहर के १० जैन मन्दिर, विभिन्न देरासर व १८ उपाश्रय के अतिरिक्त ५ कि० मी० दूर अमरसर, ८ कि० मी० दूर लोद्रवपुर, १२ कि० मी० दूर ब्रह्मसर, २४ कि० मी० दूर देवीकोट तथा २५० कि० मी० दूर बरसलपुर के जैन मन्दिर दर्शनीय हैं। इन्हें ही जैसलमेर पंचतीर्थी के नाम से अभिहित किया जाता है।
जैसलमेर की स्थापना जैसलदेव द्वारा पुरानी राजधानी लोद्रवपुर से १३ कि० मी० दूर ११५६ ई० में की गई थी, किन्तु डॉ० दशरथ शर्मा इस तिथि को अप्रामाणिक मानते हैं और ११७७ ई० के पश्चात् का समय प्रामाणिक बताते हैं। नगर का प्राचीनतम उल्लेख खरतर गच्छ पट्टावली में है, जहाँ ११८७ ई० के एक वर्णन में अन्य नगरों के साथ इसका भी नाम है। जैसलमेर भण्डार में संग्रहीत १२२८ ई० की कृति “धन्य शालिभद्र चरित्र" में इस नगर का नाम दिया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि यह नगर निर्माण के शीघ्र बाद ही जैन धर्म का केन्द्र रहा होगा । पुरातन शिलालेखों में इस प्रदेश का नाम “वल्ल मंडल (वल्ल देश) और माड भी मिलता है । जैसलमेर के साथ जैनों का सम्बन्ध इस राज्य की प्राचीन राजधानी लोद्रवा से ही रहा । सम्भवतः नई राजधानी के निर्माण के साथ ही मन्दिर भी स्थापित होते रहे। [क] चिन्तामणि पार्श्वनाथ मन्दिर :
जैसलमेर के त्रिकूट दुर्ग में ८ मन्दिर स्थित हैं, जिनमें पार्श्वनाथ मन्दिर प्रमुख है। १. जैसलमेर पंचतीर्थी का इतिहास, पृ० १२ । २. वही। ३. टॉड, एनल्स, २, पृ० २६३ । ४. राथ्रए, १, पृ० २८५ । ५. युग प्रधान गुर्वावली, पृ०.३४ । ६. जैसलमेर भण्डार का ग्रन्थ संख्या २७०।
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