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२४२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
सम्प्रदाय का प्रभाव समाप्त हो गया, तब श्वेताम्बर जैनों द्वारा इसका जीर्णोद्धार करवाने से यह श्वेताम्बर मन्दिर हो गया । दुर्ग पर अन्य सभी जैन मन्दिर खरतर गच्छ, अंचलगच्छ आदि के हैं, लेकिन तपागच्छ का एक मात्र यही मन्दिर था। मन्दिर की मूल शिलांकित प्रशस्ति नष्ट हो गई, किन्तु १४५७ ई० की उसकी प्रतिलिपि उपलब्ध है। यह मन्दिर अकबर के आक्रमण के समय नष्ट कर दिया गया था, अतः वर्तमान में मन्दिर का गर्भगृह एवं गढ़ मण्डप ही अस्तित्व में हैं। सम्भवतः यह मन्दिर पहले चन्द्रप्रभ मन्दिर कहलाता था, जिसका निर्माण साह जीजा ने करवाया था।
कुम्भ श्याम मन्दिर के सामने, प्राचीन जैन मन्दिरों का एक समूह उपलब्ध है, जिसे "सत्तबीस देवरी" कहा जाता है। इन मन्दिरों में से कुछ कुम्भाकालीन व शेष महाराणा रायमल कालीन प्रतीत होते हैं । जीर्णोद्धार हो जाने के कारण इनकी प्राचीनता समाप्त हो गई है, फिर भी जो मूल भाग है, वह तत्कालीन कला का महत्त्वपूर्ण परिचय है । मन्दिरों की निर्माण योजना सामान्य श्वेताम्बर जैन मन्दिरों के समान है, जिनमें गर्भगृह, गूढ़ मण्डप, त्रिकमण्डप, शृंगार चौकी आदि निर्मित हैं। इनमें प्राप्त मूर्तियों में से कुछ महाराणा मोकल के काल की भी हैं ।
दुर्ग में ही ७५ फीट ऊँचा सात मंजिला व सर्वोपरि गन्ध कुटी रूप छतरीयुक्त कीर्ति स्तम्भ, महावीर मंदिर के सामने निर्मित है, अतः यह इस मंदिर का मान स्तम्भ रहा होगा। यह बघेरवाल जाति के खमड़वाड़ गोत्र के साह जीजा द्वारा शुरू करवाया गया और इसे उसके पुत्र पुन्यसिंह ने कुम्भकर्ण के शासन काल में अपनी पुत्री के आग्रह पर पूर्ण करवाया।' इसके नीचे का व्यास ३१ फीट तथा ऊपर जाकर यह १५ फुट रह जाता है । टॉड को स्तम्भ के अधोभाग में शिलालेख का एक खण्डित भाग प्राप्त हुआ था, जिसके अनुसार उन्होंने इसे ८९५ ई० में निर्मित एवं तीर्थंकर आदिनाथ को अर्पित होना बताया, किन्तु यह सत्य नहीं है। नान्द गाँव के दिगम्बर जैन मन्दिर की धातु प्रतिमा पर १४८४ ई० के लेख से ज्ञात होता है कि मेदपाट देश के चित्रकूट नगर में कीर्ति स्तम्भ का निर्माण चन्द्रप्रभ जिनेन्द्र के चैत्यालय के सम्मुख जीजा शाह के पुत्र पुण्यसिंह ने करवाया था। इससे स्पष्ट है कि स्तम्भ को रचना १४८४ ई० से पूर्व ही हो चुकी थी। पुण्यसिंह हम्मीर के समकालीन थे, चित्तौड़ में गुसांई जी के चबूतरे पर स्थित समाधि पर लगे खण्डित लेख से ज्ञात होता है कि मान स्तम्भ पूर्ण होने पर भट्टारक धर्मचन्द्र से प्रतिष्ठा करवाई गई, जिनका भट्टारक काल १२१४ ई० से १२३९ ई० था अतः कीर्ति स्तम्भ का निर्माण १३वीं शताब्दी के पूवाद्धं में पूर्ण हुआ माना जाना चाहिये। इस तथ्य से इसके निर्माण काल सम्बन्धी भ्रान्त धारणाओं का खण्डन
१. अने, ८, पृ० १३९ ।
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