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जेन तीथं : २३९
कत्थई प्रतिमा और पांचवीं वेदी पर १६८९ ई० में चांदखेड़ी में किशनदास बघेरवाल द्वारा प्रतिष्ठित पार्श्वनाथ की श्याम वर्ण प्रतिमा, दो अन्य पार्श्वनाथ की प्रतिमाएँ तथा २२ धातु की छोटी-छोटी प्रतिमाएँ हैं ।
भूगर्भ गृह के ऊपर कलात्मक गुम्बदाकार छत्री है । सोपान मार्ग में अन्दर प्रविष्ट होने पर दाँयी भित्ति में २ फुट २ इंच के शिलाफलक पर भामंडल सहित एक मूर्ति एवं कुछ अन्य मूर्तियाँ, कुछ आगे एक वेदी पर २ फुट ६ इंच के शिलाफलक में लालवर्णी पार्श्वनाथ व अन्य खड्गासन प्रतिमाएँ, मोड़ से आगे एक शिलाफलक में ४॥ फुट ऊँची मुनि सुव्रत नाथ की सलेटी वर्ण की पद्मासन मूर्ति, अगले मोड़ के उपरान्त द्वार के भीतर प्रवेश करने पर १६ स्तम्भों पर आधारित मंडप, जिसकी बाँयी वेदी पर पद्मप्रभु को खड्गासन प्रतिमा, १२७० ई० की शांतिनाथ प्रतिमा, १२७० ई० की ही एक और प्रतिमा तथा १२९३ ई० को एक अन्य प्रतिमा तथा सामने ही २० वें तीर्थंकर मूलनायक मुनि सुव्रतनाथ की ४ फुट ५ इंच ऊँची सातिशय, श्याम पाषाण से निर्मित प्रतिमा है । इस प्रतिमा में पाषाण के भामंडल सहित सिर पर कच्छप के लांछल सहित तीन
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छत्र, दुन्दुभि माला लिये हुये देव, यक्ष, यक्षिणी, सेवक, वरुण, नीचे शार्दूल एवं मूर्ति पर ओपदार पालिश है जो इसे मौर्य एवं कुषाण काल के बीच की सिद्ध करती है । मूर्ति की नाक, हाथ का अंगूठा और दाहिने पैर का अंगूठा क्षतिग्रस्त है । मुस्लिम विध्वंसकों की चोट के निशान स्पष्ट दिखाई देते हैं । मूलनायक सातिशय प्रतिमा के आसपास अन्य कुछ मूर्तियाँ और हैं, जिनमें तीन मूर्तियाँ १२७० ई०, १२९३ ई० एवं १२७० ई० की हैं । भोयरे में ही पद्मप्रभु को खड्गासन प्रतिमा, मरुदेवी की भामंडल सहित दुर्लभ मूर्ति आदि भी हैं । भोंयरे के बाहर एक स्तम्भ पर १६२६ ई० के लेख में उल्लेख है कि १६२६ ई० में आचार्य हर्षकीर्ति अपने संघ के साथ यहाँ तीर्थ यात्रा पर आये थे । '
(४९) चंवलेश्वर पार्श्वनाथ ( चूलेश्वर) तीर्थ :
श्री चंवलेश्वर पार्श्वनाथ दिगम्बर जैन सातिशय क्षेत्र भीलवाड़ा से ४५ कि० मी० पूर्व में है । यहाँ अरावली पर्वत श्रृंखला की अनिंद्य सुषमा के अक्षय कोष के मध्य, काली घाटी में एक पहाड़ पर यह तीर्थं अवस्थित है । अनुश्रुति के अनुसार दरिबा गाँव के सेठ • श्यामा के पुत्र सेठ नथमल शाह की गाय पहाड़ पर स्वतः ही दूध गिरा देती थी । स्वप्न में मिले निर्देशों के आधार पर इस स्थान के उत्खनन से की सलेटी वर्ण की पद्मासन मुद्रा में २ फुट अवगाहन की मूर्ति निकली, तब सेठ ने मूर्ति प्रकट होने के स्थान पर ही मन्दिर निर्माण करवाया एवं ९५० ई० पंचकल्याण पूर्वक पार्श्वनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा करायी । अभिलेखों से प्राप्त जानकारी के अनुसार इस
पार्श्वनाथ की बलुआई पाषाण
१. भादिजेती, ४, पृ० ६२-६७ ॥
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