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जैन तीर्थ : २३७ भट्टारक कुमारदेव की है, जो १२३२ ई० में देवलोक सिधारे थे।' सातसलाकी पहाड़ी के स्तम्भ का १००९ ई० का लेख नेमिदेवाचार्य व बलदेवाचार्य का उल्लेख करता है। इसी स्तम्भ पर १२४२ ई० के शिलालेख में मूलसंघ और देवसंघ का उल्लेख है। यहाँ के शीतलेश्वर महादेव मन्दिर व नगरस्थ सूर्य मन्दिर भी बहुत भव्य एवं कलात्मक हैं। (४८) केशोराय पाटन तीर्थ :
केशोराय पाटन कोटा से १५ कि० मी० दुर उत्तर-पूर्व में चम्बल नदी के किनारे अवस्थित है। यहाँ स्थित तीर्थंकर सुव्रतनाथ का मन्दिर हाडौती प्रदेश का ही नहीं, अपितु राजस्थान के प्राचीनतम तीर्थों में से एक है। मूर्ति के अतिशय की ख्याति कई शताब्दियों से चली आ रही है । १२वीं शताब्दी में यह मन्दिर जैनाचार्यों की तपोभूमि व जैन धर्म एवं संस्कृति का प्रभाव केन्द्र रहा है । केशोराय पाटन केवल जैन तीर्थ ही नहीं, अपितु प्रसिद्ध ब्राह्मण तीथं भी है। इसके पूर्ववर्ती नाम-"आश्रमनगर", "आश्रम पट्टन"" और "पट्टन" थे । पूर्व नाम आश्रम नगर से प्रतीत होता है कि मूल रूप से यह स्थान पवित्र संतों की तपोभूमि रहा । सम्भवतः इसका चुनाव प्राकृतिक सौन्दर्य से अभिभूत होकर किया गया होगा। कालक्रम में नगरीय स्वरूप धारण कर लेने पर, इसका नाम आश्रम नगर या आश्रम पट्टन हो गया । चन्द्रशेखर रचित "सुर्जन चरित्र"६ से ज्ञात होता है कि अकबर के काल में यह केवल 'पट्टन" कहलाता था । १६०१ ई० में बून्दी के राजा शत्रुशाल ने यहाँ केशोराय (विष्णु) मंदिर निर्मित करवाया अतः इसका वर्तमान नाम अस्तित्व में आया। १३वीं शताब्दी के लेखक मदनकीति ने "शासन चतुस्त्रिंशटीका" में तीर्थ स्थान के रूप में इसका उल्लेख किया है। इन्होंने मुनि सुव्रत के मन्दिर की स्थापना एक शिला पर करने एवं तत्संदर्भित जैन व ब्राह्मणों के साम्प्रदायिक संघर्ष का भी वर्णन किया है। "प्राकृत निर्वाण कांड" एवं "अपभ्रंश निर्वाण भक्ति" में भी मुनि सुव्रत के जैन मन्दिर का सन्दर्भ दिया गया है। तलप्रकोष्ठ में मूलनायक स्थित होने के कारण इसे "भूतिदेवरा" भी कहते हैं ।
इस स्थान से खुदाई में प्राप्त एक कल्पवृक्ष पट्ट एवं अन्य जैन मूर्तियाँ, इस मन्दिर
१. टॉड, एनल्स, २, पृ० ७९२ । २. एरिराम्युअ, १९१२-१३, पृ० ७-८ । ३. एसिटारा, पृ० ४१३ ।। ४. बृहद द्रव्य संग्रह टीका, वीरवाणी, स्मारिका, पृ० १०९ । ५. हम्मीर महाकाव्य, ८, पृ० १०६-१०८ । ६. सुर्जन चरित्र, ९, पृ० २२-४१ ।
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