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________________ २३२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधमं (४०) मुछाला महावीर तीर्थं ( घाणेराव ) : घाणेराव कस्बे से तीन मील दूर, जंगल में प्रकृति की गोद में, यह प्राचीन एवं सुरम्य तीर्थ स्थित है। यहां के महावीर मन्दिर में महावीर की एक अतिशय युक्त सुन्दर मूर्ति है । मन्दिर में गर्भगृह, गूढमण्डप, त्रिकमण्डप, रंगमण्डप, पट्टसलिका एवं २४ देवकुलिका । यह मन्दिर मुछाला महावीर के नाम से प्रसिद्ध | मन्दिर के समतल वितानों पर मानवाकृतियाँ, पुष्प, पत्तियाँ एवं घनाकृतियों का सुन्दर उत्कीर्णन है । स्थापत्य शैली एवं अभिलेखीय साक्ष्य के अनुसार यह मन्दिर १०वीं शताब्दी या उससे पूर्व का होना चाहिये । यहाँ से प्राप्त प्राचीनतम अभिलेख ९७६ ई० का है, जो गूढ़ मण्डप की छत में उत्कीर्ण है । दूसरा अभिलेख ११५७ ई० का है, जिसमें श्रीवंशीय माण्डव गोत्र के यशोभद्रसूरि सन्तानीय अनुयायी मन्त्री सौहार द्वारा, प्रीति सूरि के तत्त्वावधान में पबासन बनवाने का उल्लेख है । २ (४१) बरकाणा तीर्थ : यह गोडवाड़ की पंचतीर्थी का एक महत्त्वपूर्ण एवं प्राचीन तीर्थं है । यहाँ का जैन मन्दिर प्राचीन है, किन्तु बार-बार के जीर्णोद्धार से इसका रूप पूर्णतः परिवर्तित हो चुका है । प्राचीन अवशेषों में, नवचौकी के एक स्तम्भ पर चौहान काल का एक ११५४ ई० का अभिलेख है, जिसकी भाषा अस्पष्ट एवं घिस जाने के कारण पढ़ने योग्य नहीं है, किन्तु संवत् का स्पष्ट उल्लेख होने से यह मन्दिर १२वीं शताब्दी का निर्मित प्रतीत होता है । इस मन्दिर के मूलनायक पार्श्वनाथ हैं । सर्वराज गणि ने १४९२ ई० में रचित " आनन्द सुन्दर ग्रन्थ " में " बरकाणा पार्श्व प्रसन्नो भव" लिखा है, जिससे स्पष्ट है कि यह लोकप्रिय एवं सर्वपूज्य प्रतिमा थी । यहाँ मेवाड़ के महाराणा जगतसिंह प्रथम व द्वितीय के शासन काल के दो अभिलेख हैं ।४ १६२९ ई० के अभिलेख में महाराणा द्वारा यहाँ सम्पन्न होने वाले मेले के अवसर पर पौष बुद्धि ८ से ११ तक तीर्थ यात्राओं को कर से मुक्त रखने का उल्लेख है । यह एक ५२ जिनालय वाला मन्दिर है, जिसके बाहर ही प्रस्तर के दो विशाल हाथी हैं, अन्दर चौक में भी प्रस्तर की विशाल हस्ति प्रतिमा है । इस क्षेत्र में १७४९ ई० के तीन शिलालेख भी हैं ।" चौकी में ही गजारूढ़ सेठ सेठानी की भी प्रतिमा है, जो संभवतः मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाने वाले रहे १. श्री जैप्रलेस, क्र० ३२३ । २. वही, क्र० ३२४ । ३. जैन तीर्थ सर्व संग्रह, १, खण्ड १ । ४. संबोधि ८, पृ० ८३, ८२ । ५. जैन तीर्थं गाईड, पृ० १३५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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