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________________ जेन तीर्थ : २३॥ १२८८ ई० में परमानंद सूरि द्वारा प्रतिष्ठित भी हैं। यहां मंडप की शृंगार चौकी के स्तंभ पर १२५३ ई० का लेख है।' दूसरा मन्दिर महावीर का है, इसकी रंग मण्डप की छत पर उत्कृष्ट कारीगरी है। परिक्रमा में २४ देवालय हैं। मूलनायक को श्वेत संगमरमर प्रतिमा पर १६१८ ई० का लेख है, इसमें भी विजयदेव सूरि का उल्लेख है।' रंगमण्डप के रिक्त ताकों में कुछ लेख अंकित है, किन्तु अक्षर मिट जाने से केवल १०९१ ई० ही स्पष्ट दिखाई देता है। तृतीय, शांतिनाथ मन्दिर में १६ देवालय हैं, जिनमें १०८९ ई० व १०८१ ई० के विभिन्न लेख खंडित एवं घिसे हए हैं। यहाँ की शान्तिनाथ प्रतिमा सम्प्रति कालीन बतायी जाती है। चतुर्थ, गौड़ी पार्श्वनाथ के मन्दिर में १३०८ ई० की मूर्ति है, किन्तु मन्दिर की वेदी पर ११५९ ई० का लेख है। परिक्रमा के अंतिम देवालय पर ११०४ ई० का लेख है, जो घिस चुका है व अस्पष्ट है । पाँचवाँ मन्दिर संभवनाथ का है।४ (३९) घंघाणी तीर्थ : यह जोधपुर से २२ मील दूर है। यह पहले "अर्जुन-पुर" के नाम से विख्यात था। यहाँ सम्राट् सम्प्रति द्वारा बनवाया हुआ पद्मप्रभु का २२०० वर्ष पुराना मन्दिर बताया जाता है। भूमि से ७२ फीट ऊँचा एवं तालाब के किनारे होने से इसकी शोभा अनुपम है। कुछ वर्षों से इसकी व्यवस्था जोधपुर संघ ने संभाल रखी है, यहाँ प्रतिवर्ष चैत्र कृष्ण नवमी को मेला लगता है। यहां से ८८० ई० के लेख युक्त एक तीर्थकर आदिनाथ की प्रतिमा खोजी गई ।" अभिलेख के अनुसार इस मूर्ति की प्रतिष्ठा उद्योतन सूरि के शिष्य वच्छलदेव के द्वारा करवाई गई थी। यह राजस्थान की महत्त्वपूर्ण कलात्मक जैन प्रतिमाओं में से एक है । निकट के घांघाणक स्थान पर भी चौहान कालीन जैन स्मारक हैं । यहाँ से प्राप्त ११८४ ई० के अभिलेख में महावीर के वर्षाग्रन्थि के उत्सव के निमित्त भण्डारी गुणधर द्वारा मण्डोर की मण्डपिका से आधा द्रम प्रति माह देने का उल्लेख है।६ ११९२ ई० के अन्य अभिलेख में भी जैन मन्दिरों को दिये गये अनुदान का उल्लेख है। १. जैन तीर्थ गाइड । २. वही। ३. वही, पृ० १०७ । ४. वही, पृ० १०९। ५. नाजैलेस, २, क्र० १७०९। ६. प्राजैलेस, २, क्र० ४२९ । ७. जरनल ऑफ एशियाटिक सोसाइटी ऑफ बेंगाल ( एन० एस० ) १९१५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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