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________________ जैन तीर्थ : २२९ मूलनायक के १६९८ ई० में रचित तीर्थमाला में यहाँ चार मंदिर होने का वर्णन है । अशोक के पौत्र सम्प्रति ने हमीरगढ़ में “पार्श्वनाथ का मन्दिर" बनवाया था । इस मन्दिर का जीर्णोद्धार ७६४ ई० में प्राग्वाट मन्त्री, सामन्त ने करवाया एवं आचार्य श्री ने उसकी प्रतिष्ठा की । इस कला मन्दिर की खुदाई, पीठिका की गजमाल और प्रत्येक पाषाण की कलात्मकता को देखकर यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि यह मन्दिर जगत्प्रसिद्ध देलवाड़ा के मन्दिर एवं रणकपुर के त्रैलोक्य दीपक धरणी विहार से प्राचीन है एवं उनके निर्माण का आदर्श रहा है । १४वीं शताब्दी में यह नगर अपने वैभव के लिए प्रसिद्ध था । मूल मंदिर की दीवारों पर १४९३ ई० से १४९९ ई० तक के ८ लेख खुदे हुए हैं, जिससे इसकी प्राचीनता सिद्ध होती है । शिलालेखों से ज्ञात होता है कि इस मन्दिर में रूप में पहले " जीरावला पार्श्वनाथ" की मूर्ति की स्थापना हुई थी । १६१० ई० में रचित "गौड़ी पार्श्वनाथ स्तवन" में इस गाँव का नाम मीरपुर एवं मूलनायक पार्श्वनाथ लिखा हुआ है । १४९९ ई० के पश्चात् किसी कारणवश यहाँ की गौड़ी पार्श्वनाथ की मूर्ति बम्बई के पायधुनी समाज में स्थित गौड़ी पार्श्वनाथ के मन्दिर में स्थापित की गई, ऐसी जनश्रुति है । १८वीं शताब्दी से ही यह नगर उजड़ना शुरू हो गया और यहाँ के श्रावक सिरोही एवं गुजरात चले गये । यहाँ के बावन जिनालय मन्दिर में वर्धमान सूरि द्वारा स्थापित दो खड्गासन प्रतिमाएँ हैं, जिन पर १२८९ ई० के लेख हैं । जिनचौबीसी के एक संगमरमर के पट्ट पर १९६२ ई० का एक लेख है । यह मन्दिर बहुत कलात्मक बना हुआ है । " एन्साइक्लोपीडिया ऑफ वर्ल्ड आर्ट” में विश्व के कलात्मक मन्दिरों में इसका उल्लेख है । ૪ ( ३७ ) नरहद तीर्थं : नरहद, झुंझुनू जिले में पिलानी से ८ कि० मी० दूर अवस्थित है । इसका प्राचीन नाम " नरभट" था ।" यहाँ के मन्दिरों और प्रतिमाओं के भग्नावशेषों को देखकर स्पष्ट प्रतीत होता है कि प्राचीन काल में यह एक समृद्ध बस्ती थी । " खरतर गच्छ पट्टावली" में नरहद को वागड़ प्रान्त का महत्त्वपूर्ण नगर बताया गया है । ६ १४वीं शताब्दी के १, जैसंशो, १, अंक ३, पृ० ८ । २. असाव, पृ० ३२ । ३. वही । ४. वही, पृ० ३३ ॥ ५. एसिटारा, पृ० ३२३ | ६. खबगु, पृ० ६५ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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