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जैन तीर्थ : २२७ का, परमार धारावषं द्वारा निर्मित, धारेश्वर महादेव का मन्दिर है, जिसकी पूजा, जैन मन्दिर की तरफ से होती है । धर्म समन्वय का यह सुन्दर उदाहरण है । ( ३५ ) चन्द्रावती तीर्थ :
चन्द्रावती, जो एक प्राचीन नगर था, आब के निकट, बनास नदी के किनारे अवस्थित है । इसके प्राचीन नाम, "चट्टावली", "चड्ढाउली", "चढाउलि", आदि थे । अपने समद्धि काल में यह विशाल नगर था और वर्तमान कई ग्राम जैसे-दत्ताणी, किवेरली, खराड़ी, शान्तपुरा आदि इसके भाग थे। विस्तृत क्षेत्र में बिखरे हुए मंदिरों, तोरणों, प्रतिमाओं और इमारतों के भग्नावशेष इसके विगत वैभव के प्रमाण हैं। नगर का वैभव काल, १०वीं से १५वीं शताब्दी रहा होगा, जबकि यह देवड़ा चौहानों और परमारों की राजधानी था। चन्द्रावती में प्रारम्भ से ही जैन तीर्थ होने के कारण जैन सन्त एवं विद्वान आते रहते थे। उनकी कृतियां नगर के भूतकालीन वैभव पर अच्छा प्रकाश डालती हैं। जिनसेन सूरि कृत "सकल तीर्थ स्तोत्र" में इस तीर्थ का भी उल्लेख है ।२ जिनप्रभ सूरि द्वारा १३८९ ई० में रचित "विविध तीर्थकल्प" में यहाँ के चन्द्रप्रभु मन्दिर का वर्णन है और नगर को श्री सम्पन्न वणित किया गया है।3 मेघ द्वारा १४४३ ई० में रचित "तीर्थमाला" में नगर की सम्पन्नता का वर्णन किया गया है और इसकी लंका से तुलना की गई है। मेघ के अनुसार यहाँ लगभग १८०० जैन मन्दिर थे और उनमें प्रमुख मन्दिर ऋषभ का था । १४४६ ई० में सौधर्म द्वारा लिखी गई "उपदेश सप्तति" में वर्णित है कि चन्द्रावती में ९९९ शिव मन्दिर और ४४४ जैन मन्दिर थे।" शीलविजय ने भी, १६८९ ई० में लिखी "तीर्थमाला" में यहां पर १८०० सुन्दर जैन मन्दिर होने का सन्दर्भ दिया है, जो विमल के काल में अस्तित्व में थे। ये कथन सिद्ध करते हैं कि यहाँ भूतकाल में अत्यधिक जैन मन्दिर थे । पद्मसेन सूरि से पूर्व हुए आचार्य, जो कि १२३५ई० में जीवित थे, ने चन्द्रप्रभु का जैन मन्दिर बनवाया था। पेथड़ कुमार और संघाराम जो मालवा के सुल्तान के मन्त्री थे, ने भी अपनी तीर्थयात्रा के मध्य १४वीं व १५वीं शताब्दी में यहां जैन मन्दिर निर्मित करवाये थे। १. एसिटारा, पृ० ३४१ । २. गाओसि, ७६, पृ० १५६ । ३. वितीक, पृ० १६ एवं ८५ । ४. जैन तीर्थ सर्व संग्रह, १, पृ० २७९ । ५. वही, २, पृ० ४-५ । ६. वही, १, पृ० २७९ । ७. एसिटारा, पृ० ३४५ । ८. पीटरसन रिपोर्ट, १,२०, पृ० ११ ।
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