________________
२२६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
जैन परम्पराओं में ऐसा विवरण मिलता है कि पूर्णराज नामक राजा ने भक्तिवश, उनके जन्म के ३७वें वर्ष में उनकी प्रतिमा का निर्माण करवाया था, जिसे बामनवाड़ा मंदिर में स्थापित किया गया। इस मंदिर की प्रतिष्ठा, पार्श्वनाथ के संतानीय केशी गणधर ने की ।' मूलनायक मन्दिर का जीर्णोद्धार विभिन्न वर्षों में होता रहा । वरमाण से ही, ब्रह्माणक गच्छ की उत्पत्ति हुई है । इस गच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख भी यहीं पर मिलता है । इस गच्छ का महावीर जैन मन्दिर ११८५ ई० में निर्मित हुआ था। सम्भवतः यह पहले भी अस्तित्व में था। ११८५ ई० के अभिलेख में उल्लेख है कि पूनिग एवं अन्य श्रावकों ने ब्रह्माणक गच्छ के महावीर मन्दिर में पद्मशिला बनवाई। यहाँ कुबेर को सुन्दर तराशी हुई प्रतिमा भी है। सभामण्डप के पूर्वी स्तम्भ युक्त क्षेत्र में ११८५ ई० में तराशी हुई छत निर्मित करवाई गई थी। इसमें केन्द्रीय आकृति गजलक्ष्मी है, जिसपर हाथी जल उँडेल रहे हैं । १२९४ ई० में, मदाहद के निवासी पद्मसिंह ने, यहाँ ब्रह्माणक गच्छ के मन्दिर के लिये, जैन प्रतिमाओं का एक जोड़ा बनवाया । हेमतिलक सूरि ने १३८९ ई० में, इस गच्छ के पूर्व भट्टारकों के कल्याणार्थ, इस मंदिर में एक रंगमण्डप निर्मित करवाया। भूतपूर्व सिरोही राज्य के महारावल शिवसिंह को महावीर की कृपा से राजगद्दी मिली थी, अतः उन्होंने इस मन्दिर को आधा वीरवाड़ा गाँव एवं बहुत सी जमीन अर्पण की थी। उनकी विशाल हाथी से उतरी अंजलिबद्ध खड़ी प्रतिमा आज भी मुख्य मंदिर के सामने है ।।
यहाँ के महावीर मन्दिर को कलात्मकता व शिल्प तो दर्शनीय है ही, पर इसकी शृंगार चौकी, खेला मंडप एवं प्रदक्षिणा में उत्कीर्ण मानसी की खुदाई बहुत प्रभावशाली है । मुख्य मन्दिर के बाहर अभय मुद्रा में खड़े गौतम स्वामी एवं सुधर्मा स्वामी की मूर्तियाँ बहुत ही आकर्षक हैं एवं मूर्तिकला का प्रतिमान स्थापित करती हैं । यहाँ पर महावीर के पूर्व २७ भवों का पोरबन्दर के पत्थर पर श्रेष्ठ उत्कीर्णन हुआ है। राजसभा, महल, साधु-विहार एवं वानस्पतिक वैभव, सुन्दर ढङ्ग से उकेरे हुए हैं। इस कुराई एवं रंगकारी को काँच से ढंक दिया गया है। इस मन्दिर के परकोटे में ही ११९२ ई०
१. अंचलगच्छीय पंचप्रतिक्रमणसूत्र, पृ० ८१ । २. अप्रजैलेस, पृ० ११० । ३. जैन तीर्थ सर्व संग्रह, पृ० ३०७ । ४. अप्रजैलेस, क्र० ११२ । ५. वही, क्र० ११३ । ६. असावे, पृ० २८ । ७. वही।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org