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२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधमं
को छुपाये हुये हैं । प्रस्तुत शोध प्रबन्ध में एतदर्थं निम्नलिखित ऐतिहासिक स्रोतों को आधार बनाया गया है
(अ) पुरातत्त्व :
पुरातात्त्विक सामग्री की उपलब्धि की दृष्टि से राजस्थान पर्याप्त समृद्ध रहा है । सामान्यतया, यह कल्पना की जाती है कि राजस्थान की भौगोलिक विशेषताओं एवं अतिशयताओं के कारण, यहाँ मानव की सांस्कृतिक उपलब्धियाँ नगण्य रही होंगी, लेकिन स्थानीय पुरातात्त्विक स्रोतों की विपुल उपलब्धि इस भ्रान्ति का निराकरण कर देती है ।
मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म के विभिन्न सोपानों के अध्ययन और इतिहास सर्जन के लिये यह सामग्री विश्वसनीय व प्रामाणिक मानी जाती है, क्योंकि संशय की अवस्था में पुरातत्त्व ही इतिहास की अनेक शंकाओं का समाधान प्रस्तुत करता है । पुरातत्त्व सामग्री भी पुनः दो भागों में विभक्त की जा सकती है :
(१) अभिलेख :
अभिलेख अतीत के मूल्यांकन एवं परिणामों के दृष्टिकोण से सर्वाधिक प्रामाणिक एवं विश्वसनीय साधन हैं । यहाँ तक कि साहित्यिक स्रोतों में प्रदत्त तथ्यों की पुष्टि यदि अभिलेखों से होती है, तो वे तथ्य प्रामाणिक माने जाते हैं । अभिलेख इस प्रकार अन्य साधनों की प्रामाणिकता की कसौटी के रूप में प्रयुक्त किये जाते हैं । ये अभिलेख पाषाण शिलाओं, स्तम्भों, प्रस्तरपट्टियों, भवनों, दीवारों, पत्थर एवं धातु की मूर्तियों, ताम्रपत्रों, मन्दिरों के भागों एवं स्तूपों आदि स्थानों पर उत्कीर्ण मिलते हैं । ये संस्कृत, प्राकृत, राजस्थानी, हिन्दी और मिली-जुली भाषाओं में हैं । छठी शताब्दी तक के अभिलेख ब्राह्मी लिपि में, सातवीं से नौवीं शताब्दी तक के कुटिल लिपि में और तदनन्तर देवनागरी लिपि में मिलते हैं । इनमें से अधिकांश अभिलेख, विवेच्य काल की सांस्कृतिक, धार्मिक, आर्थिक, सामाजिक व राजनीतिक स्थितियों पर बृहद् प्रकाश डालते हैं । इसके साथ ही ये तत्कालीन शासकों के अस्तित्व, कार्य, वंशावलियों, उपलब्धियों, दान, विजय, मृत्यु, राजाज्ञाओं, निर्माण कार्यों, दुर्गों की स्थिति, शासकीय पदाधिकारियों, मुगल सम्राटों एवं अन्य राजाओं से राजनीतिक और सांस्कृतिक सम्बन्धों, ऐतिहासिक घटनाओं की तिथियों तथा साहित्यिक स्थिति के बारे में भी प्रामाणिक जानकारी प्रदान करते हैं । अभिलेखों से जैन धर्म के विस्तार, उन्नति एवं इतिहास के सम्बन्ध में भी पर्याप्त सूचनाएँ मिलती हैं। राजस्थान के अधिकांश जैन इससे स्पष्ट है कि राजस्थान में जैन धर्म को पर्याप्त लोकप्रियता प्राप्त हुई तथा स्थानीय शासकों की भी इस धर्म के प्रति सद्भावना रही थी ।
मन्दिर अभिलेख युक्त हैं ।
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