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अध्याय प्रथम साधनस्रोत
मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म का बहुआयामी वैभव सम्पन्न इतिहास राजस्थान की सांस्कृतिक विरासत की एक अमूल्य धरोहर है। शुरवीर एवं पराक्रमी राजपूत राजाओं की उदार धार्मिक नीतियों ने, न केवल जैन धर्म के चार प्रमुख स्तम्भ श्रावक, श्राविकाओं, साधु एवं साध्वियों को प्रश्रय एवं संरक्षण दिया, अपितु जैन धर्म के प्रचारप्रसार में भी महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। जैन धर्म के सांस्कृतिक वैभव को चरमोत्कर्ष तक पहुँचाने का श्रेय ८वीं से १२वीं शताब्दी तक के विभिन्न राजपूत शासकों को है, तो ११वीं से १७वीं शताब्दी तक के मुस्लिम आक्रमणों से जैन धर्म के विविध प्रतिमानों यथा-जैन तीर्थस्थल, साहित्य, कला, मूर्तियों, स्थापत्य आदि को संरक्षण देने एवं सुरक्षित बचाये रखने का श्रेय भी विभिन्न राजपूत राजाओं को ही है । मुस्लिम विध्वंस के उपरान्त मन्दिरों का पुनरुद्धार करने, उनके रख-रखाव आदि के लिये न केवल राजाओं ने स्तुत्य प्रयास किये, अपितु जन-सामान्य ने भी अपरिमित सहयोग दिया। भ्रमणशील जैन मुनियों के नैतिक उत्थान के प्रयासों और धर्म में निहित आदर्शवाद, त्याग, सादा जीवन एवं ज्ञानमयी परम्परा के कारण, लोक कल्याणकारी कार्य बहुविध सम्पन्न होते रहे। वस्तुतः मध्यकालीन राजस्थान में जैन धर्म लोक जीवन को गति प्रदान करने वाली महत्त्वपूर्ण दार्शनिक, धार्मिक एवं सांस्कृतिक शक्ति रही है।
जैन मतावलंबियों ने राज्याश्रय पाकर जैन धर्म को पुष्पित पल्लवित किया । यही नहीं, उन्होंने अपनी बौद्धिक प्रतिभा से राज्य की नीतियों को भी प्रभावित किया और कई शासकों को अपनी कूटनीति, रणचातुर्य और प्रशासनिक कुशलता से लाभान्वित कर अपूर्व स्वामिभक्ति का भी परिचय दिया। राजाओं और श्रावकों के अनुकूल सामं. जस्य के कारण जैन धर्म की प्रभावना में निरन्तर वृद्धि हुई तथा इस युक्ति के परिणाम स्वरूप मन्दिर निर्माण, मूर्तिकला, चित्रकला तथा साहित्य सृजन के क्षेत्र में अपार प्रगति हुई । जैन साहित्य धार्मिक होते हुये भी, अपने कलेवर में ऐतिहासिक, भौगोलिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक ज्ञानकोष समेटे हुये हैं। राजस्थान के विभिन्न मन्दिरों व उपाश्रयों में स्थित, ज्ञात व अज्ञात ग्रन्थ भण्डारों की विशाल व प्रचुर साहित्य-सम्पदा, शोध के विभिन्न आयाम प्रस्तुत करती है। बड़ी संख्या में ताड़पत्रीय ग्रन्थ, हस्तलिखित ग्रन्थ तथा प्राकृत, संस्कृत, अपभ्रंश एवं हिन्दी आदि भाषाओं में रचित ग्रन्थ भाषा के विकास के विभिन्न सोपान प्रदर्शित करते हैं तथा तत्कालीन समाज के विभिन्न पहलुओं
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