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________________ जैन तीर्थ : २२३ अभिलेख भी उत्कीर्ण है। ऐसा विश्वास है कि धुवेल में वर्तमान में प्रतिष्ठित प्रतिमा, यहीं से ले जाई गई थी। मन्दिर के पृष्ठभाग पर २४ तीर्थंकरों और उनके पंचकल्याणकों को प्रतिमाएँ उकेरी हुई हैं। इस दीवाल का स्थापना-समारोह खरतरगच्छ के जिनचन्द्र सरि द्वारा १३०८ ई० में किया गया था । जैन हस्तलिखित ग्रन्थों को कई प्रतियाँ यहाँ १२वीं शताब्दी से १५वीं शताब्दी के मध्य तैयार की गई थीं। (३३) जूना तीर्थ : रेगिस्तान के अंचल में बसा, यह स्थान बाड़मेर नगर से १४ मोल दुर जसाई के पास पहाड़ियों की गोद में स्थित है। वर्तमान में जूना के नाम से विख्यात ऐतिहासिक स्थल, प्राचीन समय में “जूना बाहडमेर", "बहडमेरू", "बाहडगिरी", "बाप्पडाई" आदि अनेक नामों से जाना जाता रहा है। इस नगर की स्थापना परमार, धरणीवराह या धरणीधर राजा के पुत्र बाहड़ (वागभट्ट) १००२ ई ० के पश्चात् की । मुता नैणसी ने भी धरणी वराह के पुत्र बाहड़-छाहड़, दोनों का उल्लेख किया है । वागभट्ट मेरूशाह का उल्लेख, चौहान चाचिगदेव के संघमाता मन्दिर के १२६२ ई० के शिलालेखों में मिलता है। १६वीं शताब्दी के मध्य तक यह स्थान बाहडमेर के नाम से जाना जाता रहा। १५८३ ई० तक इस नगर के आबाद होने के कारण, वर्तमान जूना ही बाडमेर कहलाता था।५ १५५१ ई० में रावत भीमा ने स्वतंत्र बाडमेर बसाया, जो वर्तमान में जिला मुख्यालय है । इस ऐतिहासिक स्थल पर निर्माण कला के आदर्श नमूनों के रूप में कुएँ, तालाब, पगबाब, मन्दिर, किला आदि अब भी विद्यमान हैं। जूना स्थित जैन मन्दिरों से प्राप्त १६३६ ई० के शिलालेख में, इस स्थान के जैन तीर्थ स्थान होने की महत्ता बताई गई है। यहाँ के जैन मन्दिर अति प्राचीन हैं, जिनका उल्लेख क्षमाकल्याण कृत "खरतरगच्छ पट्टावली' में भी किया हुआ है। विजयप्रभ सरि ने अपनी "तीर्थमाला" में यहाँ के ऋषभनाथ एवं शान्तिनाथ मन्दिर का उल्लेख किया है। जूना को प्राचीन तीर्थ स्थान मानने के कारण, आज भी बाड़मेर नगर व आसपास के कई जैन परिवार इसको यात्रा का तीर्थ लाभ उठाते हैं। यहाँ पर आज भी १. जैरा, पृ० १३४ । २. ओझा-डूंगरपुर राज्य, पृ० १६ । ३. गाओसि, २१, पृ० २१ । ४. विनिस्मा, १९७५, पृ० २-२० । ५. वही, पृ० २-२२।। ६. वही, पृ० २-१८ । ७. वही। ८. जैसप्र, १७, पृ० १५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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