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________________ -२२२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म १ -का इस पर शासन था । पृथ्वीराज प्रथम ने ११०५ ई० में रणथम्भौर के जैन मन्दिर पर स्वर्ण कलश स्थापित करवाये थे । अतः यहाँ का जैन मन्दिर पूर्व मध्यकालीन प्रतीत होता है । सिद्धसेन सूरि ने रणथम्भौर को भी अपनी तीर्थों की सूची में सम्मिलित किया है | काल के ऐतिहासिक प्रवाह में यह दुर्ग विभिन्न शासकों के अन्तर्गत रहा । मुस्लिम शासकों ने अपने विध्वंस अभियानों में यहाँ के जैन मन्दिरों को भी नहीं बख्शा । अकबर ने जब यह किला जग्गनाथ को सौंपा, तब जैन धर्म को थोड़ा संबल मिला । १५०७ ई० में साह चोखा और उसको पत्नी पार्वती ने " शतकर्मोपदेशमाला" की एक प्रति तैयार करवाई और इसे रूपचन्द को भेंट में दी । एक अज्ञात कवि ने साह चोखा के आग्रह "पर "सीता प्रबन्ध" नामक कृति यहीं पर रची ।" जग्गनाथ ने टोडानगर के खीमसी को अपना मंत्री बनाया, जिसने एक सुन्दर जैन मन्दिर बनवाया और इसमें मल्लिनाथ की प्रतिमा हर्षोल्लास पूर्वक स्थापित करवाई । कनकसोम, जो कि युग प्रधान जिनचन्द्र - के साथ अकबर के दरबार में गये थे, ने अपनी "नेमिफाग रचना" रणथम्भौर में ही -लिखी । (३२) बरोदा (वाटपद्रक) तीथं : वागड़ की पुरानी राजधानी बरोदा-डूंगरपुर से ४५ कि० मी० दूर अवस्थित है । प्राचीन अभिलेखों एवं रचनाओं के अनुसार, इसका पुराना नाम " वाटपद्रक" था । 'पूर्ववर्ती काल में बरोदा जैन धर्म का एक अच्छा केन्द्र था । विनयप्रभ सूरि', जो कि १४वीं शताब्दी के आचार्य थे, ने अपने “तीर्थ यात्रा स्तवन" में यहाँ के आदिनाथ मन्दिर का वर्णन किया है । यहाँ प्राचीन जैन मन्दिरों के कई भग्नावशेष हैं । उनमें से एक पार्श्व - नाथ मन्दिर है । इसका निचला हिस्सा प्राचीन है, किन्तु ऊपरी हिस्सा नवनिर्मित है । इसमें मूलनायक की प्रतिमा देवेन्द्र सूरि के द्वारा १८४७ ई० में ही स्थापित की गई है, किन्तु वेदी पर १५१६ ई० का अभिलेख उत्कीर्ण है । प्राचीन अवशेषों में से ३ बड़ी जैन प्रतिमाएं अभी ही प्राप्त हुई हैं, जिनमें से दो पर १३०२ ई० और १३०७ ई० के १. एरिराम्युअ, १९३३ ३४, क्र० ४, पृ० ३ ॥ २. गाओस, ७६, पृ० ३१२, ३१६ । ३. वही, पृ० १५६ । ४. राजेशाग्रसू, ३, पृ० १६९ । ५. अने० ८, क्र० १२ । ६. वही । ७. वही । ८. जैसप्र १७, पृ० १५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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