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२२० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म महोत्सव पर "शान्तिरास" की कविताएँ भी रची गई। १४वीं शताब्दी के कवि लक्ष्मीगणी ने अपनी कृति "शांतिनाथ देवरास" में उसका उल्लेख किया है। यह मन्दिर १३२६ ई० में भी अस्तित्व में था, क्योंकि जिनकुशल सूरि बाड़मेर से जालोर जाते समय खेड़ा तीर्थ के दर्शनार्थ यहाँ रुके । ये सभी तथ्य इंगित करते हैं कि यहां का जैन मन्दिर, प्रसिद्ध तीर्थ था। मूलतः खेड़ा से लाये गये, जसोल के प्राचीन अवशेषों से ज्ञात होता है कि खेड़ा में पूर्वकाल में एक महावीर मन्दिर भी था । ११८९ ई० के अभिलेख में सहदेव के पुत्र सोनिग द्वारा खेड़ा के महावीर मन्दिर में तीर्थंकर संभवनाथ की दो प्रतिमाएँ भेंट करने का वर्णन है । स्तम्भ पर उत्कीर्ण ११५३ ई० के अभिलेख में उल्लेख है कि विजयसिंह नामक व्यक्ति ने वालिग अनुदान किया था । ये प्राचीन मन्दिर सम्भवतः मुस्लिम आक्रामकों ने ध्वस्त कर दिये और अभी अस्तित्व में नहीं हैं।
जिनपति सूरि, बहुधा खेड़ा आते रहते थे। ११८६ ई० में उन्होंने चातुर्मास यहीं व्यतीत किया। ११८७, ११९० ई० और ११९१ ई० में उन्होंने जैन सन्तों को उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया। राणा केल्हण के विशेष निमन्त्रण पर ११९७ ई० में पुनः खेड़ा आये और "दक्षिणावरतारत्रिका वातावरण उत्सव" सम्पन्न करवाया ।" सोम सूरि द्वारा १२७५ ई० में रचित "जिनेश्वर सूरि संयम श्री विवाह वर्णन रास" से यह ज्ञात होता है कि जिनपति सूरि ने नेमिचन्द भण्डारी के पुत्र अंबड कुमार को शांतिनाथ मंदिर में दीक्षित किया और वीरप्रभ नाम दिया । आचार्य बनने के पश्चात् वीरप्रभ जिनेश्वर सूरि के नाम से जाने जाने लगे। यह रचना मुख्यतः खेड़ा तीर्थ और वहां के वर्णनों से ही सम्बन्धित है।
(३०) हरसूर तीर्थ :
हरसूर-नागौर जिले में पुष्कर डेगाना बस मार्ग पर स्थित है और पुरातन महत्त्व का स्थान है। इसका पूर्व नाम सम्भवतः "हर्षपुरा" था। यह नवीं शताब्दी के पूर्व समृद्ध अवस्था में अस्तित्व में था। जैन साहित्य में इस नगर का वर्णन इस प्रकार
१. जैसप्र, १८, पृ० २१४ । २. वही। ३. खबृगु, पृ० ८० । ४. वही, पृ० ३४-४४ । ५. वही, पृ० ४४। ६. जैसप्र, १८, पृ० १८७ । ७. इए, ३९, पृ० १८६ । ८. शाह, एन्शेन्ट इंडिया, ३, पृ० १४० ।
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