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________________ जेन तीर्थ : २१९ संघ के भट्टारक क्षेमेन्द्र कीर्ति १६८० ई० एवं १६९९ ई० में पाली आये थे, उनके सम्मान में कई उत्सव आयोजित हुये थे । ' २९. खेड़ा तीर्थं : २ 3 मारवाड़ के राठौरों की प्राचीनतम राजधानी, खेड़ा नगर से ८ कि० मी० दूर, लूनी नदी के किनारे है । साहित्यिक एवं अभिलेखीय स्रोतों के आधार पर इसके प्राचीन नाम खेहा, खेड़ा और लवणखेड़ा थे । प्राचीन काल में यह समृद्ध कस्बा या नगर था । " साहित्यिक स्रोतों से ज्ञात होता है कि खेड़ा पूर्वकाल में जैन धर्म का बहुत बड़ा केन्द्र और तीर्थ था । १२वीं शताब्दी के कवि एवं आचार्य, सिद्धसेन सूरि ने इसका तीर्थ स्थान के रूप में उल्लेख किया है । जैन मान्यता एवं अनुश्रुति के अनुसार यशोभद्रसूरि एक जैन मन्दिर खेड़ा से नाडलाई लाये थे । इस पर विश्वास करें या नहीं, किन्तु यह तथ्य असंदिग्ध है कि जैनधर्मं इस स्थान पर पूर्वकाल से ही अस्तित्व में था । तालाब की खुदाई में प्राप्त " परिकर" में अंकित एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि वैद्य मनोरथ ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ, वैद्य जसपाल के कल्याणार्थं ऋषभदेव मन्दिर का एक तोरण निर्मित करवाया था और इसका स्थापना - समारोह भावहड गच्छ के विजयसिंह सूरि द्वारा, १९८० में सम्पन्न करवाया गया था । यह सिद्ध करता है कि १२वीं शताब्दी में यहाँ ऋषभदेव का जैन मन्दिर था । १९८८ ई० में जिनपति सूरि के उपदेशों के प्रभाव से, उद्धर्ण शाह खरतर गच्छ का अनुयायी हो गया । वह एक ख्याति प्राप्त व्यक्ति था । जिनपति सूरि के आग्रह पर अजमेर के चौहान राजा पृथ्वीराज, प्रसिद्ध व्यापारी रामदेव के साथ उद्धर्ण से मिलने खेड़ा आये थे । उद्धर्ण ने खेड़ा में शान्तिनाथ का एक बहुत सुन्दर जैन मन्दिर बनवाया, जिसका प्रतिष्ठा महोत्सव जिनपति सूरि के द्वारा १२०१ ई० में सम्पन्न करवाया गया ।" यह तथ्य " कल्पसूत्र " की एक प्रति की प्रशस्ति से भी प्रमाणित होता है ।" इस मन्दिर में प्रतिष्ठा १. एसिटारा, परि० १७ । २. जैसप्र १८, पृ० १८७ । ३. खबृगु, पृ० ८१ । ४. वही, पृ० ४४ एवं ८० । ५. एसिटारा, पृ० २९७ ॥ ६. गाओस, ७६, पृ० १५६ । ७. जैसप्र १८, पृ० १८७ । ८. खबुगु, पृ० ४४॥ ९. श्री प्रशस्ति संग्रह, पृ० ४६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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