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२१८:मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
पाली प्राचीनकाल से ही जैन तीर्थ रहा। १३वीं शताब्दी में मदनकीर्ति ने अपनी "शासन चतुस्त्रिशटीका" में पल्ली के जिनेश्वर का भी अन्य तीर्थों के साथ वर्णन किया है। किसी भट्टारक के ब्राह्मण शिष्य विश्वनाथ ने पाली शांतिजिन को तीर्थों की सूची में वर्णित किया है। इससे निश्चित रूप से सिद्ध होता है कि पाली में पूर्ववर्ती काल में अवश्य ही शांतिनाथ का दिगम्बर जैन मन्दिर रहा होगा। सिद्धसेन सरि ने अपने "सकल तीर्थ स्तोत्र" में इस तीर्थ को अत्यधिक सम्मान दिया है। यह स्थान पूर्णभद्र महावीर के रूप में विख्यात था। वर्तमान में जो पार्श्वनाथ मन्दिर है, वह मूलतः महावीर मन्दिर था। इस मन्दिर का सबसे प्राचीन हिस्सा गढ़ मण्डप है, जिसके स्तम्भ १०वीं शताब्दो या उसके पूर्व में निर्मित हैं। श्रावकों ने १२वीं शताब्दी में महावीर मन्दिर में मूर्तियां रखवाईं और उनका स्थापना समारोह सम्पन्न करवाया।३ ब्रह्मपति और रम्प्रदेवी के पुत्र जैजक ने १०८७ ई० में वीरनाथ की एक प्रतिमा स्थापित करवाई। १०९४ ई० के एक अभिलेख में उल्लेख है कि लक्ष्मण के पुत्र देशा ने अपने-अपने पुरखों भादा और भादाक के आध्यात्मिक कल्याण हेतु, देवालय में पार्श्वनाथ प्रतिमा बनवाई । १४४४ ई० में महामात्य पृथ्वीपाल ने इस मन्दिर को विमलनाथ और अनन्तनाथ की प्रतिमाओं का जोड़ा भेंट किया। मूलनायक प्रतिमा, महावीर के स्थान पर पार्श्वनाथ की होना, सम्भवतः मुस्लिम आक्रमण के कारण हुआ होगा। १६३१ ई० में मन्दिर का सम्पूर्ण जीर्णोद्धार श्रीमाल डूंगर भाखर ने ५००० रुपये व्यय करके करवाया था ।
पल्ली तीर्थ पर जैन सन्त अक्सर आते रहते थे । "उपदेशरत्नाकर" से ज्ञात होता है कि यशोभद्र सूरि ने आचार्य पद ९१२ ई० में यहीं प्राप्त किया था। बाद में उन्होंने पाली तीर्थ के लिये एक संघ यात्रा भी आयोजित की थी। जयसिंह के राज्यकाल में सिद्धराज, वीरसूरि आदि आचार्य पाली आये ।५ स्थिरचन्द्र गणी ने ११५० ई० में "पंचाशक वृत्ति" का प्रतिलिपिकरण यहीं प्रारम्भ किया। विजयसिंह सूरि ने ११५८ ई० में उमास्वामी वाचक के "जम्बू-द्वीप-समास" पर विजय जनहित टीका यहीं पर लिखी । गुणविनय उपाध्याय ने १५९४ ई० में जयशेखर की “संबोध सप्ततिका" पर एक टीका लिखी। १६१६ ई० में हेमरत्न सूरि ने "शीलवती कथा" लिखी। मूल१. ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन, बम्बई में एक गुटका । २. गाओसि, ७६, पृ० १५६ । ३. प्रोरिआसवेस, १९०८, पृ० ४५ । ४. वही, पृ० ४५-४६ । ५. जैसासइ, पृ० २३७ । ६. जैसलमेर ग्रन्थ भण्डार, सूची, पृ० ६। ७. जैसासइ, पृ० २७८ । ८. वही, पृ० ५९९ ।
९. जैगुक, पृ० २०७ ।
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