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________________ २१६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्मं था । ' उन्होंने अपना मकान भी पार्श्वनाथ मन्दिर को दे दिया था । संडेरक के श्रेष्ठी गुणपाल ने अपनी पुत्रियों के साथ महावीर जैन मन्दिर में १२वीं शताब्दी में एक चतुष्किका निर्मित करवाई । यह भी ज्ञात होता है कि पोरवाल जाति के पेथड़ के पूर्वज मोखू, संडेरक के ही मूल निवासी थे और महावीर के अनन्य उपासक थे । 3 पेथड़ और उसके ६ छोटे भाइयों ने संडेरक में दो जैन मन्दिर बनवाये । यह तथ्य १५१४ ई० में लिखित " अनुयोगद्वार वृत्ति सूत्रवृत्ति" की प्रशस्ति से ज्ञात होता है । " (२७) नाडलाई तीर्थं : १५ जोधपुर सम्भाग में, देसूरी से ६ कि० मी० उत्तर-पश्चिम में नाडलाई स्थित है । इसके प्राचीन नाम "नडुलडागिका "", " नन्दकुलवती", "नाडुलाई”", "नारदपुरी"" आदि थे । यह नगर १०वीं शताब्दी में भी अस्तित्व में था । यहाँ की "जयकाल” नामक पहाड़ी जैनियों के द्वारा "शत्रुंजय" के रूप में पवित्र मानी जाती है । प्राचीन काल में यहाँ १६ से अधिक मन्दिर थे । शांतिकुशल ने १६१० ई० में लिखी "गौड़ी पार्श्व तीर्थमाला" में यहाँ के पार्श्वनाथ मन्दिर का उल्लेख किया है । शील विजय ने भी अपनी तीर्थमाला में इस तीर्थं का उल्लेख किया है । १७वीं शताब्दी के कवि एवं आचार्य समय सुन्दर ने नाइलाई के नेमिनाथ मन्दिर का अपनी एक कविता में जीवन्त वर्णन किया है । १° यद्यपि यहाँ जैन धर्म प्राचीन काल से ही प्रचलन में था, किन्तु १०वीं शताब्दी से ही इसके पुष्ट प्रमाण मौजूद हैं । १५०० ई० के एक अभिलेख से ज्ञात होता है कि संडेरक गच्छ के जनक यशोभद्रसूरि ९०७ ई० में नाडलाई आये थे ।" यहाँ पर १२वीं शताब्दी में नेमिनाथ और महावीर के दो प्राचीन मन्दिर थे, जो मुस्लिमों के द्वारा ध्वस्त कर दिये गये और उनका जीर्णोद्धार बाद में हुआ । नेमिनाथ मन्दिर १३८६ ई० में, महाराजा वनवीर के १. एइ, पृ० ५१ । २. नाजैलेस, क्र० ८८२ । ३. जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह, पृ० १८ । ४. श्री प्रशस्ति संग्रह, पृ० ७२-७३ | ५. प्रोरिआसवेस, १९०९, पृ० ४२ । ६. वही । ७. वही । ८. भपापड, पृ० ४१५, ६२९, ६३१, ६९७, ७०३ । ९. जैन तीर्थं सर्वं संग्रह, पृ० २२३ । १०. वही । १. जैसास, पृ० ५०९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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