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________________ २१४ : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधमं से चुकाने का अनुदान स्वीकृत किया । ११६० ई० में नाडूला में स्नान करके तथा सूर्य एवं महेश्वर की पूजा करके अल्हणदेव के पुत्र कीर्तिपाल ने महावीर जैन मन्दिर को उसके अन्तर्गत १२ गाँवों से एकत्रित करके दो द्रम वार्षिक का अनुदान स्वीकृत किया । जो जोधपुर के मन्दिर का नाम अनन्तनाथ की मुख्य वेदी पर ही १६२९ ई० की अभिलेख युक्त ३ मुहणोत जयमाल के द्वारा स्थापित करवाई गई थीं । "रायविहार" भी उल्लिखित है । 3 मन्दिर के दालान में प्रतिमा है, जिस पर १८३६ ई० का लेख है ।४ ( २५ ) कोरटा तीर्थ : कोटा, संडेरा से २६ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम में है । इसका प्राचीन नाम कोरंटकथा एवं यह एक बड़ा कस्बा रहा होगा । प्रतिमाएँ हैं, अभिलेख में एक वेदी पर । कोरटा जैन मतावलम्बियों का प्रसिद्ध तीर्थ था । १३१४ ई० में लिखित " उपकेश गच्छ चरित्र” के अनुसार यह स्थान लगभग २,००० वर्ष पुराना है ।" वस्तुतः इस स्थान की इतनी प्राचीनता विश्वसनीय नहीं है । रत्नप्रभ सूरि, जिन्होंने यहाँ के महावीर मन्दिर का स्थापना समारोह सम्पन्न करवाया था, का काल ८वीं शताब्दी के आसपास है, अतः ८वीं शताब्दी में यह तीर्थ अस्तित्व में था १०वीं शताब्दी में धनपाल ने अपनी कविता " सत्यपुरीय महावीर उत्साह" में कोरंट के महावीर मन्दिर का उल्लेख किया है । १०३२ ई० का एक अभिलेख, जो पिण्डवाड़ा गाँव के महावीर मन्दिर में पार्श्वनाथ प्रतिमा के पृष्ठ पर खुदा हुआ है, से ज्ञात होता है कि यह प्रतिमा चछा और सज्जन, जो श्यामनाग के पुत्र थे तथा कोरंटक के श्रावकों के द्वारा स्थापित की गई थी। सिद्धसेन सूरि के " सकल तीर्थ स्तोत्र" में भी इस तीर्थं का उल्लेख है ।" " प्रभावक चरित्र" के अनुसार सप्तशत देश का, कोरंटपुरा एक समृद्ध कस्बा था, जिसमें धनी लोग रहते थे, जो अत्यधिक धर्मप्रिय थे । यह तीर्थं मध्यकाल में भी अत्यधिक लोकप्रिय रहा । मेघशील १. एइ, ९, १० ६३ । २. प्राजैलेस, २, क्र० ३६६, ३६७ ॥ ३. यतीन्द्र विहार, २, पृ० ७७ । ४. जैरा, पृ० १०७ । ५. पट्टावली समुच्चय, पृ० ४९ । ६. जैसंशो, ३, अंक १ । ७. अप्रजैलेस, क्र० ३६६ | ८. गाओस, ७६, पृ० १५६ । ९. प्रभावक चरित्र - मानदेवप्रबन्ध, पृ० १९१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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