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________________ जैन तीर्थ : २१२ का उल्लेख है', जबकि इसी मन्दिर के १२८८ ई० के अभिलेख में इसे हथूण्डी महावीर का मन्दिर वर्णित किया गया है ।२ १२७८ ई०, १२७९ ई०, १२८८ ई०, व १२८९ ई० के अभिलेखों में इस मन्दिर के निमित्त दिये गये अनुदानों का उल्लेख है । १२८८ ई० के अभिलेख में वर्णित है कि सेवाड़ी के कर गृह से २४ द्रम का अनुदान दिया जावे। इसी समय के एक अन्य अभिलेख में उल्लेख है कि महावीर मन्दिर को साहूकार हेमाक ने २४ द्रम का वार्षिक अनुदान दिया ।' १२९९ ई० का एक अभिलेख बताता है कि राता महावीर के मन्दिर को कुछ विसल प्रिय ब्रह्म भेंट किये गये थे।६ १०वीं शताब्दी में इस स्थान के नाम पर ही वासुदेवाचार्य ने हस्तिकुण्डी गच्छ प्रारम्भ किया। यह गच्छ बाद में बहुत लोकप्रिय रहा। हथूण्डी के राठौरों की एक पृथक शाखा थी, जो जैन धर्म में दीक्षित होने के बाद हथूण्डिया श्रावक हुए।" ( २४ ) नाडौल तीर्थ : नाडौल, जवालिया रेलवे स्टेशन से तेरह किलोमीटर दूर व नाडलाई से ११ कि० मी० उत्तर-पूर्व में स्थित है । यह स्थान चौहान परिवार की मारवाड़ शाखा की राजधानी थी । चौहान शासकों के उदार संरक्षण में नाडौल में जैन धर्म की अत्यधिक प्रगति हुई। यह कस्बा, गोडवाड़ (मारवाड़) की जैन पंचतीर्थी का एक तीर्थ माना जाता है। यहाँ का महावीर जैन मन्दिर बहुत प्रसिद्ध रहा है। यहाँ से प्राप्त ९६७ ई० और ९८२ ई० के दो प्राचीन अभिलेखों से इस तीर्थ की प्राचीनता की पुष्टि होती है । कुमारपाल के सामंत राजा अश्वराज ने कुछ निर्दिष्ट दिनों में हिंसा के निषेध और अहिंसा पालन के आदेश दे रखे थे। मंदिर के गूढ़ मण्डप में नेमिनाथ और शांतिनाथ की दो कायोत्सर्ग प्रतिमाओं के ११५८ ई० के अभिलेख से ज्ञात होता है कि ये प्रतिमाएँ देव सूरि के शिष्य पद्मचन्द्र गणी द्वारा वेसड़ स्थान के महावीर मन्दिर में स्थापित की गई थीं। ११७७ ई० में अल्हणदेव ने स्नान और सूर्य पूजा के उपरान्त ब्राह्मणों एवं गुरुओं को दान देने के उपरान्त यहाँ के महावीर जैन मन्दिर को पाँच द्रम मासिक की राशि नाडौल के करगृह १. प्राजैलेस, २, क्र० ३१९ । २. वही, क्र० ३२० । ३. वही, क्र० ३२०-३२२ । ४. प्रोरिआसवेस, १९०८, पृ० ५२ । ५. वही। ६. इए रिपोर्ट, १९५५-५६, पृ० ३१ । ७. एसिटारा, पृ० २७३ । ८. वरदा, १६, अंक १-३, पृ० १९ । ९. प्राजैलेस, २, क्र० ३६४, ३६५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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