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________________ २१० : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधमं ૨ 3 अनवरत चलती रहीं । यहाँ के श्रावकों ने भी विभिन्न धर्म संघों के साथ कई बार जैन तीर्थों की यात्राएँ सम्पन्न कीं ।" पेथड़शाह ने १३वीं शताब्दी में एक जैन मन्दिर बनवाया था, किन्तु उसमें प्रतिमाएँ १५वीं व १६वीं शताब्दी में स्थापित की गईं । १४६७ ई० में आदित्यनाग गोत्र के श्रीवन्त और शिवरत ने उपकेश गच्छ के कक्क सूरि के द्वारा शीतलनाथ की प्रतिमा का स्थापना -समारोह सम्पन्न करवाया, ३ १५०२ ई० में सांडक ने अपनी पत्नी के साथ देवगुप्त सूरि ( उपकेश गच्छ ) के द्वारा कुन्थुनाथ की प्रतिमा का स्थापना-समारोह आयोजित करवाया । १५३६ ई० में उपकेश गच्छ के सिद्धर्षि द्वारा आदित्यनाग गोत्र के कर्मसी ने शीतलनाथ की प्रतिमा का स्थापना - समारोह सम्पन्न करवाया ।" उक्त तथ्यों से संकेत मिलता है कि नागौर में उपकेश गच्छ के अनुयायी विपुल संख्या में थे । हीरविजय सूरि, जिनको अकबर ने “जगद्गुरु" की उपाधि दी थी, ने १५८७ ई० में चातुर्मास नागौर में ही व्यतीत किया था । जिनचन्द्र सूरि, जिनको अकबर ने " युगप्रधान " की उपाधि प्रदान की थी, वे भी अकबर के निमन्त्रण पर लाहौर जाते समय नागौर होकर गये थे । १६१० ई० में शान्ति कुशल सूरि द्वारा लिखित "गौड़ी - पाश्वं - तीर्थ माला" में भी नागौर का जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख है । जैन तीर्थ होने के साथ-साथ नागौर साहित्यिक केन्द्र भी रहा । कृष्णषि के शिष्य जयसिंह सूरि ने ८५८ ई० में "धर्मोपदेशमाला विवरण" यहाँ के एक जैन मन्दिर में लिखी । चन्द्र सूरि ने ११७७ ई० में "उपदेशवृत्ति" नागौर में ही लिखना प्रारम्भ किया था । जिनवल्लभ के एक श्रावक पद्मानन्द ने " वैराग्य शतक" की रचना की । धनेश्वर, लाहड़ और देवचन्द्र ने १२३९ ई० में "पाक्षिकसूत्र चूर्णि वृत्ति" और १२४४ ई० में “पंचागी सूत्रवृत्ति" की प्रतियाँ विभिन्न शास्त्र भण्डारों को भेंट में देने के लिये तैयार करवाईं । १५वीं शताब्दी में जिनभद्र नागौर में भी शास्त्र भण्डार स्थापित किया ।" समय सुन्दर ने "शत्रुंजय रास" सूरि ने अन्य स्थानों के साथ १. खबृगु, पृ० ६३ । २. जैसासइ, पृ० ४०५ । ३. नाजैलेस, क्र० १२७४ । ४. बीजैलेस, क्र० २५३३ । ५. वही, क्र० २५३७ । ६, जैसप्र, ५, पृ० ३६६-३६८ । ७. जैसास, पृ० २४३ ॥ ८. वही, पृ० २३३ । ९. जैन पुस्तक प्रशस्ति संग्रह, पृ० १२२-१२३ । १०. जैसप्र १६, पृ० १६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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