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जैन तीर्थ : २०९
(२१) नागौर तीर्थ :
नागौर, जोधपुर संभाग में जिला मुख्यालय एवं पुरातन महत्व का एक प्रमुख नगर है। प्राचीन काल में इसके कई नाम थे जैसे-"नागपुरा", "नागउर", "नागपट्टन",3 "अहिपुर"४ और 'भुजंग नगर" ५ ओझा के अनुसार इसका प्राचीन नाम "अहिछत्रपुर" था और यह जांगलदेश की राजधानी था । नागौर के लम्बे समय तक मुस्लिम नियन्त्रण में रहने के कारण प्राचीन हिन्दू एवं जैन मन्दिर ध्वस्त कर दिये गये, किन्तु साहित्यिक प्रमाणों से सिद्ध होता है कि नागौर जैन धर्म का महत्त्वपूर्ण केन्द्र था। बहुत प्राचीन काल से ही नागौर की जैन तीर्थ के रूप में मान्यता है । १२वीं शताब्दी के प्रसिद्ध लेखक एवं आचार्य सिद्धसेन सूरि ने अपने "सकल तीर्थ स्तोत्र" में नागौर का जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख किया है। यहाँ कई जैन मन्दिर थे । कृष्णर्षि के उपदेशों से श्रेष्ठो नारायण ने एक जैन मन्दिर बनवाया था और ८६० ई० में उसका स्थापना समारोह सम्पन्न हुआ था। यह मन्दिर "नारायण स्वामी' के मन्दिर के नाम से प्रसिद्ध हुआ। “नागौर चैत्य परिपाटी" से ज्ञात होता है कि १७वीं शताब्दी में भी यह मन्दिर अस्तित्व में था। ११०५ ई० में देव सूरि ने हेमचन्द्र सूरि को आचार्य की पदवी से विभूषित किया। इस उपलक्ष्य में आयोजित उत्सव में सेठ धन्ध ने अपार धन व्यय किया ।° नागौर के श्रावकों के निमन्त्रण पर खरतर गच्छ के जिन वल्लभ सूरि और जिनदत्त सूरि यहाँ आये और १२वीं शताब्दी में उन्होंने विधि चैत्य की स्थापना की ।।१ धनदेव नाम के एक श्रावक ने नेमिनाथ मन्दिर निर्मित करवाया और इसका स्थापनासमारोह जिनवल्लभ सूरि के द्वारा करवाया ।१२
नागौर में मुस्लिम शासन स्थापित होने के बाद भी जैन धर्म की गतिविधियाँ
१. राभा, १, पृ० ४७ । २. गाओसि, ७६, पृ० १५६ । ३. एइ, १२, पृ० २५ । ४. पोटरसन रिपोर्ट, ४, पृ० १२ । ५. वही, २, पृ० ५४-५५ । ६. ओझा निबंध संग्रह, पृ० १९ । ७. गाओसि, ७६, पृ० १५६ ।। ८. कुमारपालचरित्र महाकाव्य प्रशस्ति । ९. जैसप्र, १२, पृ० १०२। १०. हेमचन्द्र का जीवन, पृ० ४२ । ११. खबृगु । १२. जैसासइ, पृ० २३३ ।
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