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________________ २०८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म गंगोभेद तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध था।' धनपाल ने अपनी कविता "सत्यपुरीय महावीर उत्साह" में इस स्थान के महावीर का भी संदर्भ दिया है ।२ १२वीं शताब्दी के आचार्य और लेखक सिद्धसेन सूरि ने "सकल तीर्थ स्तोत्र" में इस स्थान का उल्लेख किया है। जगचन्द्र सूरि महान तपस्वी जैन संत थे । उनके तप को देखकर १२२८ ई० में आघाट मेवाड़ के शासक जैसिंह ने उन्हें "तपा" की उपाधि प्रदान की। झांझण धर्मघोष सूरि के साथ अपनी तीर्थयात्रा के दौरान संघ सहित इस तीर्थ के दर्शनार्थ भी आया था।" उदार गुहिल शासकों के शासन में ब्राह्मण धर्म के साथ-साथ इस स्थान पर जैन धर्म भी पुष्पित, पल्लवित होता रहा । “राससंग्रह" नामक रचना से ज्ञात होता है कि अल्लट के मंत्री ने यहाँ एक जैन मन्दिर १०वीं शताब्दी के मध्य में बनवाया था और उसमें पार्श्वनाथ की प्रतिमा संडेरक गच्छ के यशोभद्र सूरि के द्वारा स्थापित की गई थी। यशोभद्र सूरि ९७२ ई० में दिवंगत हुए, इस तथ्य की पुष्टि जैन मन्दिर की देवकुलिका के अभिलेख से भी होती है। इस अभिलेख के अनुसार मयूर, श्रीपति और मत्तट क्रमशः अल्लट, नरवाहन और शक्ति कुमार के अक्षपटलिक वर्णित किये गये हैं । इन्होंने ही जैन मन्दिर निर्मित करवाया होगा। जैत्रसिंह और तेजसिंह के मुख्य अमात्य जगतसिंह और समुद्धार ने भी जैन धर्म को संरक्षण दिया । जैन सन्तों की प्रेरणा से यहाँ पर कई हस्तलिखित ग्रन्थों की प्रतिलिपियाँ राजकीय संरक्षण में लिखी गईं। जैत्रसिंह के शासनकाल में “ओघ नियुक्ति" और "पाक्षिक वृति" को प्रतिलिपियाँ ताड़पत्रों पर १२२८ ई० एवं १२५३ ई० में लिखी गईं। इन प्रतियों में जगतसिंह नामक मन्त्री का भी उल्लेख है । जगतसिंह के पुत्र तेजसिंह के शासनकाल में १२६१ ई० में आघाट में समुद्धार के मंत्रित्वकाल में "श्रावक प्रतिक्रमण चूणि"९ की सचित्र प्रति ताड़पत्रों पर तैयार की गई । इसमें ६ चित्र हैं। इनसे सिद्ध होता है कि आहड़ साहित्यिक केन्द्र भी था। १. एसिटारा, पृ० २१९ । २. जैसंशो, ३, अंक १ । ३. गाओसि, ७६, पृ० १५६ । ४. वही। ५. जैसासइ, पृ० ३९५ । ६. ओझा, उदयपुर राज्य, पृ० १३३ । ७. पीटर्सन रिपोर्ट, ३, पृ० ५२ । ८. वही, पृ० १३० । ९. वही, ५, पृ० २३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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