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________________ जैन तीर्थ : २०७ में पाश्वनाथ की एक प्रतिमा यहाँ स्थापित करवाई थी।' १३३४ ई० में केल्हा ने पाश्वनाथ गर्भगृह का जीर्णोद्धार करवाया ।। १४२९ ई० में एक पोरवाल व्यापारी ने पार्श्वनाथ मन्दिर में एक देवकुलिका बनवाई । यह मन्दिर मूल रूप से दिगम्बर जैनों का था, किन्तु कुम्भकरण के शासन काल में खरतरगच्छ के अनुयायियों द्वारा परिवर्तित कर दिया गया। इस देवालय में एक बड़ी हो रुचिकर प्रतिमा है, जिसमें शिलाफलक के मध्य में आभा-मण्डल युक्त ध्यानस्थजिन, दोनों पाश्वों में तिकोनी टोपी वाले चवरी धारक, गणधर तया हवा में उड़ते हुये देवादि उत्कीर्ण हैं ।४ नागदा में जैन मन्दिरों के भग्नावशेष भी हैं, जिनमें से एक पार्श्वनाथ मन्दिर द्रष्टव्य है । इसमें गर्भगृह, सभामंडप और २ गुम्बदों सहित खुला बरामदा है। शिखर एवं गुम्बद यद्यपि आधुनिक हैं, किन्तु गर्भगृह की अलंकृत दीवारें और सभा मण्डर १३७३ ई० के सोलंकी कुमारपाल के काल के प्रतीत होते हैं। जैन मन्दिर अद्भुदजी का ऐसा नाम शान्तिनाथ की विशाल आश्चर्यजनक व चमत्कारी मूर्ति के कारण पड़ा । यह मन्दिर कुम्भकर्ण के राज्यकाल में १४३७ ई० में देवकूलपाटक के पोरवाल जाति के रामदेव के पुत्र सारंग नामक व्यापारी के द्वारा बनवाया गया था। इस मन्दिर में महाराणा कुम्भा के काल में १४३८ ई० में कुन्थुनाथ और अभिनन्दन-नाथ को विशाल अभिलेख युक्त प्रतिमाएं हैं। मध्यकाल में जैन धर्म के नागदा जाति के लोग बहुत धार्मिक मनोवृत्ति के थे। इन्होंने जैन मुनियों को भेंट में देने के लिये कई हस्तलिखित ग्रन्थों को प्रतिलिपियाँ तैयार करवाई । १५वों शताब्दी में हुये भट्टारक ज्ञान भूषण ने जैन मत की नागदा जाति के इतिहास विषयक "नागदारास" नामक रचना लिखी। (२०) आहड़ (आघाटपुर) तीर्थ : आहड़ नदी पर बसा, आहड़ नामक गांव उदयपुर से ३ कि० मी० पूर्व में है । जैन स्मारकों एवं अभिलेखों के अनुसार इसका प्राचीन नाम "आघाटपुर" और "आटपुर" है।६ १०वीं शताब्दी में यह मेवाड़ के राणाओं के पूर्वज गुहिलों की राजधानी और १. प्रोरिआसवेस, १९०५-०६, पृ० ६३ । २. वही, क्र० २२४३ । ३. वही, क्र० २२४२ । ४. वही, १९०५, पृ० ६१ । ५. एइ, ४, पृ० ३० । ६. एइ, ३९, पृ० १८७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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