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२०६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म 'प्रतिलिपि' तथा १५६७ ई० में मूषवाचक ने 'गजसुकुमाल सछिउ २ सांचौर में ही "लिखी । १४७२ ई० में रचित एक तीर्थमाला में, साँचौर तीर्थ भी वणित है । जिनहर्ष
और कुशलधीर ने १६३५ ई० में "भृगपत्र चौपाई" की रचना की । यह समय सुन्दर की जन्मस्थली थी और १६२० ई० में उन्होंने यहाँ रह कर "सांचौर-मंडन-वीरस्तवन" रचा। (१९) नागदा, नागद्रह या अद्रभुदजी तीर्थ :
एकलिंग की पहाड़ी की गोद में अवस्थित नागदा, पुरातन महत्व का स्थान है।" संस्कृत अभिलेखों के अनुसार, इसके प्राचीन नाम "नागहृद" और "नागद्रह" मिलते हैं । यह कस्बा ६४६ ई० में शिलादित्य के पिता नागादित्य के द्वारा स्थापित किया गया था। नागदा पूर्ववर्ती काल में जैन तीर्थ था। १३वीं शताब्दी में विशालकोर्ति के शिष्य मदन कीर्ति ने अपनी "शासन-चतुस्त्रिशटीका" में अन्य तीर्थंकरों के साथ नागद्रह के पार्श्वनाथ की भी वन्दना की है। जिनप्रभ सूरि द्वारा १३३२ ई० में लिखित "विविध तीर्थ कल्प" में भी इस तीर्थ का उल्लेख है ।' पश्चादवर्ती तीर्थ मालाओं में भी इस तीर्थ का वर्णन किया गया है । सुन्दर सूरि ने नागद्रह पार्श्वनाथ की स्तुति में एक स्वतन्त्र स्तोत्र की रचना की ।° तीर्थ स्थान होने के कारण यहाँ अनेक जैन सन्त आते रहते थे। १३८० ई० के "विज्ञप्ति महालेख" से ज्ञात होता है कि खरतरगच्छ के जिनोदय सूरि अपनी तीर्थ यात्रा के दौरान इस तीर्थ पर भी आये थे ।११
वर्तमान पद्मावती मन्दिर वस्तुतः पूर्वकाल का प्रसिद्ध पार्श्वनाथ मन्दिर था। यह मन्दिर इल्तुतमिश के आक्रमण के समय ध्वस्त किया गया । मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाकर इसमें नयी प्रतिमाएं स्थापित की गईं । पासडदेव और संघाराम ने १२९९ ई०.
१. जैगुक, २, पृ० ८३५ । २. वही, पृ० ९४१ । ३. एसिटारा, परि० क्र० ४ । ४. जंगुक, २, १२६६ । ५. एसिटारा, पृ० २१३ । ६. एइ, २०, पृ० ९७ । ७. जैसाऔइ, पृ० २४८ । ८. वितीक, पृ० ८६ एवं १०६ । ९. एसिटारा, परि० क्र. ९ । १०. जैसप्र, ४, पृ० २५ । ११. अगरचन्द नाहटा के पास है।
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