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________________ २०४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म ने "परिहंबत्तीसी" व "अक्षर बत्तीसी"१, १८वीं शताब्दी में करमचन्द्र ने "रोहिणी चौपाई" एवं तिलकचन्द्र ने “देशी परदेशी चौपाई २ की रचना जालौर में ही की। ओसवाल, सरावगी व महेश्वरी जातियों में सोनी गोत्र का उद्भव जालौर के स्वर्णगिरि से ही हुआ, जो "सोनगरा" व कालक्रम में केवल सोनी रह गया । १३०० ई० के अभिलेख में उल्लिखित नरपति एवं उसके पिता आदि ओसवाल सोनी ही थे। सोनगरा राजपूत भी होते हैं। (१८) सांचौर तीर्थ : ___ साँचौर, जोधपुर से २१२ कि० मी० दक्षिण-पश्चिम में, लूणी नदी के किनारे अवस्थित है। इसके प्राचीन नाम "सत्यपुरा" और "सच्चपुरा" थे। मुस्लिम शासन में इसका नाम "महमूदाबाद' रख दिया गया था। यह कस्बा १०वीं शताब्दी में भी अस्तित्व में था। साँचौर, जैन एवं शैव धर्मों का केन्द्र था । महावीर मन्दिर के कारण यह जैन तीर्थ माना जाता था । “जगचितामणि" नामक प्राचीन चैत्यवंदन स्तोत्र में इस तीर्थ का अगाध भक्ति पूर्वक वर्णन किया गया है। मालवा के राजा भोज के दरबार के कवि धनपाल साँचौर आये थे। यहाँ उन्होंने महावीर प्रतिमा की भक्ति एवं सम्मान में अपभ्रंश कविता “सत्यपुरीय महावीर उत्साह" की रचना की। इस कविता में वर्णित है कि श्रीमाल, चन्द्रावती, अन्हिलवाड़ा और सोमनाथ ध्वस्त हो गये, किन्तु सत्यपुरा के वीर, जो मनुष्यों को प्रसन्नता है, ध्वस्त नहीं हये। यह प्रार्थना उनके द्वारा अन्य सभी स्थानों की प्रतिमाओं की तुलना में सर्वाधिक सुन्दर मानी गई है । जिनप्रभ सूरि द्वारा दिये गये एक विवरण के अनुसार यह प्रतिमा मण्डोर के नाहड़ के द्वारा बनाई गई थी। मूल प्रतिमा पोतल की थी, जो जाज्जिग सूरि के द्वारा स्थापित की गई थी । अलाउद्दीन खिलजी ने अपने १३१० ई० के आक्रमण में मन्दिर ध्वस्त कर दिया तथा मूर्ति को दिल्ली ले जाकर टुकड़े-टुकड़े कर दिये। यह जैन मन्दिर अब अस्तित्व में नहीं है। मुस्लिम धर्मान्धता ने इसका समूल नाश कर दिया, किन्तु कुछ अभिलेख मन्दिर के सम्बन्ध में फिर भी प्रकाश १. अभय जैन ग्रन्थालय, ग्र० सं० ८०४६, ८११३ । २. जैगुक, २, पृ० १३३०, १३३२ । ३. एसिटारा, पृ० १९८ । ४. प्रोरिआसवेस, १९०८, पृ० ३५ । ५. एसिटारा, पृ० १९८ । ६. जैनतीर्थ सर्वसंग्रह, पृ० ३०३ । ७. जैसंशो, ३, अंक १ । ८. वितीक, पृ० २८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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