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________________ २०२ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म तृतीय, महावीर मन्दिर या खन्दन विहार है, जो नानक गच्छ से सम्बन्धित रहा । १३वीं शताब्दी के आचार्य, महेन्द्र सूरि ने अपनी " अष्टोत्तरी तीर्थमाला" में "यक्ष क सति" का उल्लेख सम्भवतः इस मन्दिर के लिये ही किया है ।" वह मन्दिर प्रतिहार शासक नाइडराव द्वारा निर्मित बताया जाता है । इस महावीर मन्दिर में वरदेव ने एक भव्य पार्श्वनाथ कक्ष का निर्माण करवाया । १२६३ ई० के अभिलेखानुसार रावल लक्ष्मीधर ने इस मन्दिर को १०० द्रम की भेंट दी थी। १२२६ ई० में नरपति नामक तेलिया ओसवाल ने इस मन्दिर के लिये ५० द्रम का अंशदान दिया था । विजयप्रभ सूरि ने अपनी " तीर्थं माला" में इस मन्दिर का उल्लेख किया है । अतः यह मन्दिर १४वीं शताब्दी में भी अस्तित्व में था । १२२४ ई० में जिनेश्वर सूरि ने मन्दिर पर ध्वजा फहराई, तथा १२५३ ई० में चौहान शासक उदयसिंह एवं सभासदों की उपस्थिति में महावीर मन्दिर में तीर्थंकरों, आचार्यों एवं अन्य प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा महोत्सव सम्पन्न करवाया गया, जिसे देखने पालनपुर और वागड़ के निवासी भी आये थे । जाबालिपुर में १३वीं शताब्दी में शांतिनाथ और अष्टापद मन्दिर भी थे । चाचिगदेव के शासन काल में १२५९ ई० में पदसू और मूलिंग ने शांतिनाथ जैन मन्दिर पर स्वर्ण कलश चढ़ाये थे । ७ मन्दिर में मूर्तियाँ जिनेश्वर सूरि द्वारा हर्षोल्लास के बीच रखवाई गई थीं । आबू के लूणवसहि जैन मन्दिर के १२५९ ई० के अभिलेख से ज्ञात होता है कि जालौर में अष्टापद मन्दिर था । देवचन्द्र ने यहाँ दो चबूतरे बनवाये थे तथा १५९४ ई० तक यह मन्दिर अस्तित्व में था, जैसा कि नागर्षि की "जालुर नगर पंच जिनालय: चैत्य परिपाटी" से ज्ञात होता है ।" जैनाचार्यों के बारम्बार आगमन से यहाँ "विधि चैत्य" आन्दोलन को बल मिला । यहाँ के शासकों ने भी स्वयं भाग लेकर इनको प्रोत्साहन एवं संवर्धन प्रदान किया - जिनपति सूरि को मृत्यु के बाद, जिनेश्वर सूरि जाबालिपुर से विशेष रूप से संबद्ध रहे । उनकी दीक्षा यहीं हुई व १२२१ ई० में आचार्य भी यहीं बने। उनके सम्मान में यहाँ १. जैनतीर्थं सर्वसंग्रह, पृ० १८७ । २. जैसप्र, पृ० १४३ । ३. प्रोरिआसवेस, १९०९, पृ०५५ । ४. वही । ५. जैसप्र १७, पृ० १५ । ६. खबगु, पृ० ५०-५१ । ७. वही, पृ० ५१ 1 ८. अप्रजैलेस, क्र० २७९ । ९. जैस, ७, दीपोत्सवांक । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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