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________________ जैन तीर्थ : २०२ ( १७ ) जालोर या जाबालिपुर ( सुवर्णगिरि तीर्थ ) : जालौर, जोधपुर के १२० कि० मी० दक्षिण में, सूकड़ी नदी के बायें पार्श्व पर स्थित है । इसका प्राचीन नाम "जाबालिपुर" था। निकटवर्ती एक पहाड़ी के कारण यह "सुवर्णगिरि" और "कांचनगिरि' भी कहलाने लगा। 'कुवलयमाला" से यह स्पष्ट है कि ८वीं शताब्दी में यहाँ प्रतिहार वत्सराज का शासन था तथा यह एक भव्य, संपन्न एवं धार्मिक नगर था। पूर्व मध्यकाल में यह पवित्र जैन तीर्थ था। सिद्धसेन सूरि ने अपनी तीर्थमाला में जाबालिपुर जैन तीर्थ का ससम्मान उल्लेख किया है। यहाँ के आदिनाथ, महावीर, शांतिनाथ और पार्श्वनाथ जैन मंदिर प्रसिद्ध थे। इन मंदिरों का समय-समय पर जीर्णोद्धार होता रहा और श्रद्धालु, श्रावक दान और भेंट आदि देते रहे । यहाँ का प्राचीनतम मंदिर आदिनाथ का है, जो ७७८ ई० में भी अस्तित्व में था, क्योंकि उद्योतन सूरि ने "कुवलयमाला" इस मंदिर में ही रची थी। समरसिंह के राज्यकाल में, ११८२ ई. में, यशोवीर नामक श्रीलाली वैश्य ने अपने भाई यशराज, जगधर तथा गोष्ठी के समस्त सदस्यों के साथ आदिनाथ मंदिर में एक मंडप बनवाया था । दूसरा पार्श्वनाथ मंदिर है, जो ११६४ ई० में चालुक्य शासक द्वारा कांचनगिरी दुगं पर, हेमचन्द्र के उपदेशों से प्रेरित होकर बनवाया गया था। इसे कुमार विहार" भी कहा जाता है । महाराजा समरसिंह देव के आदेशों से भण्डारी यशोवीर ने ११८५ ई० में इसे पुननिर्मित करवाया । पूर्ण देवाचार्य द्वारा इस मंदिर के तोरण की प्रतिष्ठा और ध्वजारोहण संपन्न हुआ था। नाट्यशाला के सभामंडप पर स्वर्ण कलश चढ़ाने का उत्सव रामचंद्राचार्य द्वारा १२११ ई० में, दीपोत्सव के दिन सम्पन्न करवाया गया था ।। १२३९ ई० अभिलेख से ज्ञात होता है कि नागौर के लाहिड़ी ने आदिनाथ की एक प्रतिमा, पार्श्वनाथ मंदिर में स्थापित की थी।५ १२९६ ई० में नरपति ने, अपनी पत्नी नायक देवी के आध्यात्मिक कल्याण के निमित्त, अपने परिवार के सदस्यों एवं संघपति गणधर के साथ एक बाजार का भवन या गोदाम पार्श्वनाथ मंदिर को दिया था, ताकि उसके किराये की आय से गोष्ठी प्रतिवर्ष “पंचमी बली' का आयोजन करती रहे। १. जबिउरिसो, १९२८, मार्च, पृ० २८ । २. एइ, २६, पृ० ७३ । ३. एइ, ११, पृ० ५४ । ४. वही, पृ० ५५। ५. जैनतीर्थ सर्वसंग्रह, पृ० १८७ । ६. एइ, ११, पृ० ६०। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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