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जेन तोयं : १९९ लोकप्रिय रहा । इन क्षेत्रों में इस गच्छ के उल्लेख वाले कई अभिलेख खोजे गये हैं।'
मन्दिरों की नगरी ओसिया का मुस्लिम आक्रमणों से विध्वंस हो गया। "उपकेश गच्छ प्रबन्ध" से ज्ञात होता है कि ११९५ ई० में मुस्लिम सेनाओं ने, इधर से गुजरते समय, इस कस्बे को ध्वस्त कर डाला। सम्भवतः यह मुहम्मद गोरी के, अजमेर के पृथ्वीराज चौहान तृतीय के विरुद्ध आक्रमण के दौरान हुआ। (१६) मेड़ता तीर्थ
जोधपुर से ११७ कि० मी० उत्तर-पूर्व में मेड़ता कस्बा स्थित है। इसके प्राचीन नाम "मेडांतक"3 और मेड़तपुर थे। मध्यकाल में यह "मेदिनीपुर" के नाम से जाना जाता था। इसका सर्वप्रथम उल्लेख ८३७ ई० के प्रतिहार सामन्त बाउक के काल के जोधपुर अभिलेख में मिलता है। शान्ति कुशल ने १६७० ई० में लिखी "श्रीगौड़ीपार्श्व-तीर्थमाला" में मेड़ता का जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख किया है। धर्मनिधान के शिष्य धर्मकीर्ति ने अपनी “मेडता चैत्य परिपाटी" में यहाँ १० जैन मन्दिर होने का उल्लेख किया है। दयावर्धन ने भी यहाँ के मुख्य मन्दिर का वर्णन किया है।
मेड़ता असंदिग्ध रूप से प्राचीन कस्बा है, किन्तु पुरातात्विक अवशेषों की दृष्टि से ११वीं शताब्दी के दो स्तम्भ व लक्ष्मी मंदिर की कुछ संरचनाएँ ही, मुगल काल से पूर्व की, अवशिष्ट हैं । जैन तीर्थ व जैन धर्म का केन्द्र होने का उल्लेख साहित्यिक प्रमाणों से ही प्राप्त है।९ ११वीं शताब्दी में अभयदेव सूरि ने मेडता में यक्ष, कदंब आदि, बड़ी संख्या में, ब्राह्मणों को जैन मत में धर्मांतरित करके, यहाँ मन्दिर का निर्माण करवाया। इनके शिष्य हेमचन्द्र ने १११३ ई० में यहां "भव भावना" की रचना की।१ १११३ ई० में ही उन्होंने "क्षत्रपल्ली" की स्वोपज्ञ टीका सहित रचना की। चौहान शासक मालदेव के आग्रह पर जिनचन्द्र सूरि १३२२ ई० में मेड़ता आये और २४ दिन तक १. नाजैलेस, २, ३ एवं अप्रजैलेस २. लहर, २, अंक ८, पृ० १४ । ३. पीटरसन रिपोर्ट, ३, पृ० २७४। ४. एइ, १८, १० ९८ । ५. वही। ६. जैसप्र, ५, पृ० २६६-२६८ । ७. जैन तीर्थ सर्व संग्रह, पृ० १९८ । ८. वही। ९. एसिटारा, पृ० १७८ । १०. सभा, ३, पृ० २७४ । ११. जैसप्र०, पृ० ८५ ।
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