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१९४ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म (१३) किराडू तीर्थ :
किराडू, जोधपुर संभाग में बाडमेर से २६ कि० मी० उत्तर-पूर्व में है। इसका प्राचीन नाम “किरातकूप" था। गढ़, मन्दिरों एवं भवनों में यत्र-तत्र फैले हुये भग्नावशेष बताते हैं कि किसी समय यह कला एवं संस्कृति का केन्द्र था तथा बड़ा नगर था। मूल रूप से यह परमार शासकों के अन्तर्गत था, किन्तु सम्पूर्ण रूप से मुस्लिम विध्वंस का शिकार हो गया।
१२वीं शताब्दी के आचार्य एवं विद्वान् लेखक सिद्धसेन सूरि ने 'सकल तीर्थ स्तोत्र" में किराडू का जैन तीर्थ के रूप में उल्लेख किया है।' यद्यपि वर्तमान में यहाँ कोई मन्दिर नहीं है, किन्तु भूतकाल में उनके अस्तित्व के बारे में कोई सन्देह नहीं है । कनक सूरि द्वारा १३३८ ई० में रचित "नाभिनन्दन जिनोद्धार" से ज्ञात होता है कि श्रेष्ठी समरसिंह के आठवें पूर्वज वेसट, इस स्थान पर आकर बसे और उन्होंने कक्क सूरि के द्वारा नवनिर्मित जैन मन्दिर में पार्श्वनाथ की प्रतिमा की स्थापना करवाई। वंशावलियों से ज्ञात होता है कि इस स्थान पर यात्रा संघों में आने वाले श्रावकों के द्वारा कई जैन मन्दिर बनवाये गये थे । ११५३ ई० में नाडोल के शासक आन्हलदेव ने शिवरात्रि पर जीव हिंसा रोकने व पशओं की सुरक्षार्थ यह आदेश महाजनों, ताम्बलिकों और सामान्य प्रजा को जारी किया था कि जीवित प्राणियों का वध नहीं किया जावे । निश्चित रूप से यह आदेश श्रावकों को अधिक संख्या को देखते हुये उनकी भावनाओं के सम्मानार्थ ही जारी किया गया होगा। ब्राह्मण, पुजारी, मन्त्री एवं सभी को अहिंसा के इस आदेश का पालन करना अनिवार्य था, अन्यथा इसका उल्लंघन करने वाले को ५ द्रम का जुर्माना देना होता था। (१४) भीनमाल (श्रीमाल) तीर्थ :
भीनमाल, जोधपुर से १६९ कि० मी० दक्षिण पूर्व में है । इसका प्राचीन नाम "श्रीमाल" था। नगर के नाम की उत्पत्ति के सम्बन्ध में विभिन्न मत हैं । वस्तुतः मूल नाम भीलों के आधिक्य के कारण "भिल्लमाल" था, जो कालान्तर में भीनमाल हो गया।६ पद्मनाभ ने इसे चौहानों को ब्रह्मपुरी कहा । यह राजस्थान का एक प्राचीन नगर है। सिद्धसेन सूरि ने "सकल तीर्थ स्तोत्र" में भीनमाल को "जैन तीर्थ" बताया १. गाओसि, ७६, पृ० १५६ । २. भपापइ, पृ० १५३-१६० । ३. वही, पृ० ४१६, ५११, ६२९ व ६६५ । ४. एइ, ११, पृ० ४३-४४ । ५. एसिटारा, पृ० १५६ । ६. निशीथचूणि, पृ० १०.२२५ ।
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