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________________ १९० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म से स्पष्ट है कि जिनोदय सूरि पार्श्वनाथ के प्रति श्रद्धा वश यहां आये थे। बीकानेर के शासक राजा रायसिंह के मंत्री कर्मचन्द्र ने जिनदत्त सूरि और जिनकुशल सूरि के स्तूप १७वीं शताब्दी में बनवाये थे । मध्यकाल में यहाँ बहुत से जैनाचार्य और विद्वान् आये । कतिपय विद्वानों ने अपनी साहित्यिक कृतियों की रचना यहीं की। १६३२ ई० में श्रीसार ने "मोतिकपासीवा" यहीं रहकर लिखी। इन्होंने "फलौधी पावं स्तवन" की भी रचना की। सुमति सुन्दर ने “सारस्वत व्याकरण टीका" की प्रतिलिपि अपने शिष्य सुमति हेमगिरी से १६५९ ई० में लिखवाई।४ जिनविजय ने यहीं पर अपना "चौबीसी जिन स्तवन" १६७४ ई० में लिखा ।" विनयलाभ ने भी १६९१ ई० में "सिंहासन बत्तीसी" और "विक्रम चौपाई" यहीं पूर्ण की। (१२) जीरावला तीर्थ : प्रसिद्ध जैन तीर्थ जीरावला पार्श्वनाथ, देलवाड़ा से ३२ कि० मी० दूर, अबुद पर्वत के पश्चिमी ढाल पर स्थित रेवदर से १० कि० मी० दुर स्थित है। जैन जगत में इस तीर्थ के कई नाम है, जैसे-जीरावली, जीरापल्ली, जीरिकापल्ली एवं जयराजपल्ली, किन्तु इसका नामकरण जयराज पर्वत के नाम पर हुआ। जयराज पर्वत की गोद में बसी बस्ती जयराजपल्ली, जिसका प्राकृत नाम "जइराउली" एवं अपभ्रंश रूप "जीराउली" "जीराउला" एवं तत्पश्चात् “जीरावला" नाम प्रतिष्ठित हुआ। प्राचीन काल में यह भीनमाल से पाटन जाने वाले मार्ग का मुख्य नगर एवं व्यापार का केन्द्र था । जैन परम्परा के अनुसार महावीर के अबुद प्रदेश बिहार के समय यह क्षेत्र भी पवित्र हुआ होगा। जैन परम्परा का इतिहास बताता है कि मौर्य सम्राट् सम्प्रति ने इस मन्दिर का जीर्णोद्धार करवाया था। जैनों को तीर्थ यात्राओं को मान्यताओं में इस तीर्थ की यात्रा अपरिहार्य मानी जाती है । सम्पूर्ण श्वेताम्बर मन्दिरों की प्रतिष्ठा एवं धार्मिक अनुष्ठान के प्रारम्भ में "ॐ श्री जीरावल पार्श्वनाथाय नमः" का मंत्राक्षर केसर से लिखा जाता है । इससे इस तीर्थ की महिमा प्रकट होती है। १. विज्ञप्ति पत्र महालेख संग्रह (अप्रका०) । २. एसिटारा, पृ० ४२७ । ३. जैगुक, पृ० ५३६ । ४. जैसप्र, पृ० ३२० । ५. जैगुक, पृ० १२८८ । ६. वही, पृ० १३१९ । ७. असावे, पृ० ८७ । ८. वही। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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