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जैन तीर्थ : १८७
शताब्दियों में यह गच्छ चित्तोड़ और जैसलमेर क्षेत्र में भी प्रचलन में था । १४२५ ई० में सिरोही राज्य की स्थापना के पश्चात् इस गच्छ के आचार्य की गादी यहाँ से सिरोही स्थानांतरित कर दी गई ।" इस गच्छ के एक आचार्य ने सिरोही के अजितनाथ के मन्दिर में एक " भद्र प्रासाद" का निर्माण करवाया था, जिसका स्थापना समारोह १४६३ ई० में कमलप्रभा सूरि के द्वारा सम्पन्न करवाया गया था । जैन मन्दिरों के अतिरिक्त यहाँ मदार देवी और महादेव के प्राचीन मन्दिर भी हैं ।
(१०) मोरखानों तीर्थ :
मोरखानों, बीकानेर जिले में देशनोक से लगभग १९ कि० मी० दक्षिण पूर्व में है । १६६६ ई० के एक अभिलेख के अनुसार इसका प्राचीन नाम " मोराखियाणा" था । मोरखानों का मुख्य आकर्षण स्थल, महाजनों के एक गोत्र " सुराणा " की कुल देवी का मन्दिर है, जिसका नाम " सुसाणी मन्दिर" है । इस मन्दिर में ११७२ ई० का एक अभिलेख है, जिससे यह स्पष्ट प्रमाणित होता है कि यह मन्दिर ११७२ ई० के पूर्व ही इस कस्बे में निर्मित हो गया था तथा यह कस्बा ११वीं शताब्दी से भी पूर्ववर्ती समय का है । कीर्ति स्तम्भ या गोवर्धन के अभिलेख से यह भी स्पष्ट है कि यह कस्बा ११ वीं शताब्दी से पूर्व का है ।" यह कीर्ति स्तम्भ एक लाल सैंडस्टोन पर चारों तरफ से खुदा हुआ एक अभिलेख है । यहाँ का सुसाणी मन्दिर पूर्ववर्ती काल में एक तीर्थं था ।
यह मन्दिर एक ऊँचे चबूतरे पर बना हुआ है, जिसमें एक कोठरी, खुला सभा मण्डप और सामने एक बरामदा है । यह जैसलमेरी पत्थर से निर्मित है। गर्भगृह की बाह्य दीवार देवी-देवताओं और नृत्य - मुद्राओं की आकृतियों से अलंकृत है । दरवाजा भी अलंकरण से रूपांकित | गर्भगृह का शिखर खोखला है एवं अंदर देवी की प्रस्तर प्रतिमा है, जो अन्य अलंकरणों से उकेरी गई है। गर्भगृह के चारों ओर एक कम ऊंचाई की दीवार है, जिससे एक खुली प्रदक्षिणा बनती है । सभा मण्डप १६ स्तम्भों व समतल छत वाला है । १२ स्तम्भ, मण्डप के सीमा प्रदेश में व ४ मध्य में हैं । ४ केन्द्रीय स्तम्भ तथा कोठरी के सामने के २ स्तम्भ घट- पल्लव शैली के हैं और बारीक नक्काशी से अलंकृत हैं, किन्तु पीछे के दो स्तम्भ अन्य स्तम्भों से भिन्न हैं । केन्द्रीय स्तम्भों में से एक पर
१. जैसप्र १०, पृ० १९१ । २ . वही
३. एसिटारा, पृ० ४२३ ॥
४. बीजैलेस, क्र० २६०३ ।
५. ओझा, बीकानेर राज्य, पृ० ५८ ।
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