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जैन तीर्थ : १८५
हेतु होने वाले व्यय को सहन करने के लिये अंशदान देते थे। मूंगथला में ही सुन्दर सूरि ने लक्ष्मी सागर को १४४४ ई० में वाचक उपाध्याय की पदवी प्रदान की और उनके भाई संघपति भीम ने इस अवसर पर एक भव्य समारोह का आयोजन किया था। ___इस प्रकार मूंगथला महातीर्थ होने के साथ-साथ जैन धर्म का बहुत महत्त्वपूर्ण केन्द्र भी था । सम्भवतः यह एक बड़ा कस्बा था, जैसा कि "महिमा" की तीर्थमाला से स्पष्ट होता है कि १६६५ ई० तक इस नगर की सम्पन्नता निर्बाध रूप से थी। इसके बाद इसका ह्रास प्रारम्भ हुआ और कालान्तर में यह केवल एक गाँव रह गया।
(८) तलवाड़ा तीर्थ :
बांसवाड़ा से १३ कि० मी० दूर, तलवाड़ा का प्राचीन नाम 'तलपाटक" था । १०वीं व ११वीं शताब्दी में यह कस्बा परमारों के द्वारा अथूणा से शासित होता था। तलवाड़ा जैनियों का प्रसिद्ध तीर्थ स्थान था। सिद्धसेन सूरि ने अपने "सकल तीर्थ स्तोत्र" में इस तीर्थ का वर्णन किया है।४ १४वीं शताब्दी के लेखक विनयप्रभ सूरि ने अपनी कृति "तीर्थयात्रा स्तवन" में इस तीर्थ का व यहाँ के शांतिनाथ मन्दिर का उल्लेख किया है ।" बालचन्द्र सूरि के "उपदेशकंदल वृत्ति" से ज्ञात होता है कि १०वीं शताब्दी में होने वाले प्रद्युम्न सूरि यहाँ भी आये थे और यहाँ के शासक को प्रतिबोधित किया था। भूषण का पूर्वज अंबट जिसने कि अथूणा में ११०९ ई० में जैन मन्दिर बनवाया था, तलपाटक का ही रहने वाला था। वह एक विद्वान् चिकित्सक और नागर परिवार का रत्न था । मध्यकालीन जैन धर्म के रक्षक एवं तत्कालीन प्रभावशाली आचार्य जिनभद्र सूरि के उपदेशों से इस स्थान पर जैन मन्दिर बनवाया गया था एवं उसमें मूर्तियाँ स्थापित की गई थीं। उदयनन्दी के शिष्य संघकलश गणि ने १४४८ ई० में अपनी कृति “सम्यक्त्व रास" की रचना यहीं पर की थी। वर्तमान समय में यहाँ पर संभवनाथ का एक विशाल मन्दिर है, जिसमें ११वी व १२वीं शताब्दियों की कुछ मूर्तियाँ भी हैं । जैन तीर्थ के अतिरिक्त यह स्थान वैष्णव तीर्थ भी रहा है । १. उपदेश तरंगिणी, पृ० २२४ । २. गुरुगुणरत्नाकरकाव्य, पृ० १, ९० । ३. प्राचीन तीर्थमाला, २, पृ० ६० । ४. गाओसि, ७६, पृ० १५६ । ५. जैसप्र, १८, पृ० १५ । ६. गाओसि, ७६, पृ० ३३१ । ७. एइ, २१, पृ० ५० । ८. जैसप्र, १६, पृ० १६ । ९. जैसासइ, पृ० ३८३-५५० ।
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