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जैन तीर्ष : १८३
समारोह महेन्द्र सूरि ने सम्पन्न करवाया था। यहीं पर ११८३ ई० में धरकट वंश के जसघवल, विदन और अन्य श्रावकों तथा नानक गच्छ के भी कुछ श्रावकों ने मिलकर, शांति सूरि के उपदेशों से सम्भवनाथ का स्थापना समारोह आयोजित किया था। महावीर की प्रतिमा भी इन्हीं आचार्य के द्वारा १४४८ ई० में स्थापित की गई थी। १४४९ ई० में दूदा, वीरम, महीपा आदि ने अपने परिवार के सदस्यों के साथ, वीर के परिकर का निर्माण करवाया था।४ १६१२ ई० के अभिलेख में इस तथ्य का वर्णन है कि इस महावीर मन्दिर को मेवाड़ के राणा अमरसिंह के द्वारा एक अनुदान स्वीकृत किया गया था।
नाणावाल और ज्ञानकीय गच्छ सम्भवतः एक ही गच्छ के दो नाम प्रतीत होते हैं । यह गच्छ प्रभाचन्द के द्वारा नाणा में स्थापित किया गया । ११वीं से १५वीं शताब्दी के सिरोही क्षेत्र के आसपास से खोजे गये असंख्य अभिलेख, इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि लोगों पर उस समय इस गच्छ का बहुत प्रभाव था। इस गच्छ का सर्वप्रथम उल्लेख १०४५ ई० के अभिलेख में पाया गया है। महेन्द्र सूरि और शांति सूरि इस गच्छ के प्रभावशाली आचार्य प्रतीत होते हैं, क्योंकि इनके उपदेशों व निर्देशों से कई प्रतिमाएँ स्थापित की गई ज्ञात होती हैं। कालक्रम में नानक गच्छ के अनुयायी और आचार्य, अन्य स्थानों को प्रवास कर गये। यह गच्छ जैसलमेर में १३वीं से १५वीं शताब्दी तक काफी लोकप्रिय था। १५वीं व १६वीं शताब्दी में मेवाड़ में भी इसका प्रचलन पाया गया है। (७) मूंगथला तीर्थ :
सिरोही जिले में आबू के निकट, मूंगथला एक प्राचीन गांव है। इसका प्राचीन नाम "मूंगस्थला" था। यहाँ ८३८ ई० में मोगदेश्वर नामक एक शव मन्दिर की पूजा होती थी। इससे सिद्ध होता है कि यह गांव ९वीं शताब्दी से पूर्व का है। यह स्थान जैनियों एवं ब्राह्मणों दोनों के लिये पवित्र तीर्थ था।
१. अप्रजैलेस, क्र० ३४४ । २. वही, क्र० ३४६ । ३. वही, क्र० ३४९ । ४. वही, क्र० ३५१ । ५. वही, क्र० ३६२ । ६. वही, क्र. ३६७ । ७. वही, क्र० ३४६, ४०७, ४०९, ४१२, ४१३, ४२५ । ८. नाजैलेस, भाग ३। ९. वही, २, क्र० ११११, ११४३ एवं १०२१ ।
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