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________________ १८२: मध्यकालीन राजस्थान में जेनधर्म अजमेर के कुछ चौहान शासकों ने शव होते हुए भी बिजौलिया के पार्श्वनाथ मन्दिर को गांवों के दान दिये ।' ११६८ ई० में पृथ्वीराज द्वितीय ने मोरझरी गाँव का अनुदान दिया था। इनके चाचा सोमेश्वर ने स्वर्ग प्राप्ति की इच्छा से रेवाणा नामक गांव का पूर्णदान इस मन्दिर के निमित्त दिया। बिजौलिया अभिलेख में समीपवर्ती स्थानों के कई व्यक्तियों द्वारा दिये गये अनुदानों का उल्लेख है। गुहिल पुत्र रावल दधर और महात्मा धनसिंह ने कावा व रेवाणा गाँवों के मध्य स्थित एक क्षेत्र, दोहली दान में दिया। ग्राम खंडूवरा के निवासी गौड़ जातीय सोनिग और वासुदेव ने एक दोहालिका दिया। पाश्वंनाथ के गर्भगृह द्वार पर उत्कीर्ण ११६९ ई० के अभिलेख में महीधर के पुत्र मनोरथ का नमन लिखित है। यह स्थान जैन सन्तों एवं दिगम्बर जैनों के लिये इतना पवित्र हो गया था कि एक पौराणिक ग्रन्थ “उत्तम शिखर पुराण" रेवती नदी के किनारे विशाल शिला पर उत्कीर्ण करवाया गया, जिसमें पार्श्वनाथ के केवलज्ञान प्राप्त करने, कमठ शठ के दुष्कृत्यों और भीमवन का उल्लेख है। यहाँ के शिलालेखों का ऐतिहासिक महत्त्व भी अत्यधिक है। (६) नाणा तीर्थ : __ अहमदाबाद-अजमेर रेलवे लाइन पर नाणा नामक रेलवे स्टेशन से ३ कि० मी० को दूरी पर इसी नाम का एक गाँव है । इसका प्राचीन नाम नाणक था। इस स्थान के ९६० ई० के अभिलेख से ज्ञात होता है कि यह १०वीं शताब्दी में भी अस्तित्व में था। १०वीं शताब्दी से १५वीं शताब्दी तक यह निरन्तर फलता-फूलता रहा। "जीवित स्वामी" के तीर्थ के रूप में नाणा' कस्बा जैन धर्म में विशेष रूप से प्रसिद्ध रहा। कभी यहाँ पर महावीर की पुरुषाकार प्रतिमा का पूजन होता था, किन्तु यह सब किंवदंति-पूर्ण प्रतीत होता है। १०वीं शताब्दी में यहां एक महावीर मन्दिर अवश्य था। मन्दिर की वेदी के दरवाजे का ९६० ई० का एक छोटा खंडित अभिलेख स्पष्ट रूप से सिद्ध करता है कि इस काल में यहाँ जैन मत अस्तित्व में था । ११११ ई० में महादित्य की पत्नी ने इस मन्दिर का तोरण निर्मित करवाया था। ११४६ ई० में नागद्र और अन्य श्रेष्ठियों ने शांतिनाथ और नेमिनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमाएं निर्मित करवाईं और उनका स्थापना १. एइ, २६, पृ० ९६-९७ । २. प्रोरिओसवेस, १९०८, पृ० ४९ । ३. नाणा, दियाणा, नांदिया; जीवत स्वामी वांदिया ११ । ४. अप्रजैलेस, क्र० ३४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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