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जैन तीर्थ : १७९
मूर्तियाँ कला की दृष्टि से उच्च स्तर की हैं। सरस्वती की प्रतिमा पर १०४५ ई० का लेख अंकित है।' इसके अतिरिक्त दो श्वेत पाषाण तथा एक काले पत्थर की सिंहारूढ़, बहुत ही कलापूर्ण एवं मनोज्ञ मूर्तियाँ हैं। ११वीं शताब्दी के लेखक धनपाल ने अपनी कविता "सत्यपुरीय महावीर उत्साह" में यहाँ के महावीर स्वामी के मन्दिर का उल्लेख किया है । सम्भव है, यहाँ के भैरव मन्दिर के पास से जो प्राचीन, स्तम्भ एवं तोरण द्वार प्राप्त हुये हैं, वे सब महावीर मन्दिर के प्राचीन अवशेष हों। ऐसा प्रतीत होता है कि यह सम्पूर्ण मन्दिर संगमरमर का बना हुआ था तथा अपनी मूल स्थिति में कला का अद्भुत नमूना रहा होगा। यह मन्दिर १२वीं शताब्दी में मुसलमानों द्वारा नष्ट कर दिया गया, क्योंकि इसके बाद की मूर्तियां इसमें नहीं मिलती।३ । __ नरैना में वर्द्धमान स्वामी का जो कलात्मक मन्दिर ११७० ई० में बना, वह ११९२ ई० में मुस्लिम विध्वंस की कोप-दृष्टि का शिकार हो गया। उत्खनन के समय जमीन से प्राप्त मूर्तियों की स्थिति को देखकर यह प्रतीत होता है कि नरैना के जैन समाज ने आक्रमण से पहले ही मूर्तियों को उसके समीप ही ११-१२ फीट गहरा गड्ढा खोदकर व्यवस्थित एवं अत्यन्त सावधानी पूर्वक गाड़ दिया था। मूलनायक वर्द्धमान की प्रतिमा इतनी भारी थी कि उसे शीघ्रता से मन्दिर से हटाया नहीं जा सका। इसके अतिरिक्त और भी २-४ प्रतिमाएँ मन्दिर में ही रह गईं; वे सब मन्दिर सहित विध्वंस का शिकार हो गई।
१८९७ ई० में नरैना के श्रेष्ठी शाह अजीतमल लुहाड़िया ने स्वप्न के आधार पर खुदाई करवा कर ११ प्रतिमाएँ प्राप्त की। एक प्रतिमा पर चन्द्रमा का चिह्न है, शेष बिना चिह्न की हैं । चन्द्रमा चिह्नित तीर्थकर चन्द्रप्रभु की ३ फीट ऊंची प्रतिमा पद्मासन मुद्रा में है। एक छोटी, आकर्षक एवं श्वेत वर्ण की सरस्वती की प्रतिमा भी प्राप्त हुई, जिस पर १०४५ ई० का लेख है। खुदाई में एक चरण पादुका भी प्राप्त हुई, जिस पर १०२६ ई० का लेख है। इसके अतिरिक्त संगमरमर की ५ मूर्तियाँ भी हैं। इसके बाद लगभग २५-३० वर्ष के उपरान्त यहाँ फिर खुदाई की गई, जिसमें १ फुट ऊँचो श्वेत प्रतिमा प्राप्त हुई। १९७४ ई० में एक टीले की खुदाई में भी कुछ मूर्तियाँ प्राप्त हुई, जिसमें २ श्वेत संगमरमर की तथा एक चरण पादुका है । प्रतिमाओं की अवगाहना पौने तीन फीट है एवं इनका प्रतिष्ठा काल १४वीं शताब्दी का है । ये सभी मूर्तियाँ यहां के दिगम्बर जैन बड़े मन्दिर में रख दी गई हैं।
मध्यकालीन युग में भी नरैना में श्रद्धालु जैन समाज था, अतः प्रायः जैन साधु यहाँ
१. एसिटारा, परि०, क्र० २६ । २. जैन सा० संशो०, ३, पृ० १ । ३. एसिटारा, ३१८ ।
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