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. १७८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
मूर्तियाँ हैं । पहाड़ी के ऊपर कई गुफाएँ एवं निषेधिकाएँ हैं । इनके समक्ष ही प्राचीन एवं अत्यधिक पुरातात्विक महत्त्व का नंदीश्वर जिनालय है।
२५ जुलाई, १९७२ ई० को यहां भूगर्भ से नींव खोदते समय सर्वाधिक २४ मूर्तियाँ प्राप्त हुई थीं, जिसमें से पाँच श्याम वर्ण की व शेष श्वेत पाषाण की हैं । ये सभी मूर्तियाँ १२वीं शताब्दी की हैं एवं अधिकांश पद्मासन में तथा २-३ कायोत्सर्ग मुद्रा में हैं । ये सभी शान्तिनाथ मन्दिर अतिशय क्षेत्र में रखी हुई हैं। (४) नरैणा तीर्थ :
नरैणा फुलेरा जंक्शन से १११ कि० मी० दूर दक्षिण की तरफ है। यह स्थान ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत प्राचीन है तथा ११वी व १२वीं शताब्दी में अत्यधिक समृद्ध था। शिलालेखों एवं साहित्य में इसके प्राचीन नाम नरानयन, नराण और नराणक मिलते हैं । यहाँ सांभर और अजमेर के चौहानों का राज्य था तथा सैनिक दृष्टि से इसे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। यहाँ पर भूगर्भ से १०वीं व ११वीं शताब्दी की मूर्तियाँ निकली हैं, जो इस बात को सिद्ध करती हैं कि इस स्थान पर मुसलमानों का आक्रमण हुआ था।
चौहानों के राज्य में नरैणा जैन धर्म का बहुत बड़ा केन्द्र हो गया था। १२वीं शताब्दी के लेखक सिद्धसेन सूरि ने इसको अपने "सकल तीर्थ स्तवन" में जैनियों के प्रसिद्ध तीर्थ के रूप में वर्णित किया है ।५ जैनाचार्य भी यहाँ रहते थे, १०२६ ई० की पादुका पर एक जैनाचार्य का नाम अंकित है।६ ११७० ई० के बिजौलिया के शिलालेख के अनुसार प्राग्वाट जाति के लोलक के पूर्वज पुण्यराशि ने यहाँ पर वर्धमान स्वामी का मन्दिर बनवाया । १०७९ ई० के यहाँ से प्राप्त एक शिलालेख के अनुसार, प्राग्वाट जाति के मथन नाम के व्यक्ति ने अपने परिवार के सदस्यों सहित, मूर्तियों की प्रतिष्ठा की। इन शिलालेखों से यह विदित होता है कि यहां पर पोरवाल जैन रहते थे । यहाँ पार्श्वनाथ को खड्गासन प्रतिमा ९५२ ई० की है। यहाँ से प्राप्त जैन देवियों की
१. भादिजैती । २. खबगु, पृ० २५ । ३. गाओसि, ७६, पृ० ३१२-३१६ । ४. एइ, २६, पृ० ९९ । ५. गाओसि, ७६, पृ० ३१२-३१६ । ६. एसिटारा, परि०, क्र० २३ । ७. एइ, २६, पृ० ८४ । ८. एसिटारा, परि०, क्र. २४ । ९. वही, परि० क्र० २५ ।
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