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१७६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
रचना की। १६३५ ई० में रावजेठी ने अपनी पत्नी कनकदेवी के कल्याणार्थ पार्श्वनाथ देवगृह की स्थापना जिनराज सूरि के द्वारा करवाई ।
मन्दिर के परिसर में मेरू पर्वत के भाव पर बने हुये मूल मन्दिर, चिन्तामणि पार्श्वनाथ के चारों ओर, प्रांगण में चारों कोनों में, ४ छोटे मन्दिर हैं, जो थारूशाह ने १६४० ई० में बनवाये, किन्तु इनमें प्रतिष्ठित मूर्तियों के अभिलेखों से विदित होता है कि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा मूल मन्दिर के साथ १६१८ ई० में ही हो गई थी। उत्तरपश्चिम व उत्तर-पूर्व कोनों के मध्य एक त्रिगढ़ा के ऊपर अष्टापद के भाव का धातु का दर्शनीय कल्पवृक्ष निर्मित है, जो नाना प्रकार के फल-फूलों से लदा हुआ बहुत सुन्दर लगता है । मूल मन्दिर के सभा मण्डप में सहजकीर्तिगणी रचित "शतदल पद्मयन्त्र" की प्रशस्ति का शिलालेख है, जो अलंकार शास्त्र को दृष्टि से अपूर्व है। इस यन्त्र में २५. चतुष्पद श्लोकों के १०० पंखुड़ियों के रूप में १०० चरण हैं और प्रत्येक चरण का अन्तिम अक्षर यन्त्र के मध्य स्थित ''मः" अक्षर है। पूर्णचन्द्र नाहर ने इस प्रशस्ति के बारे में लिखा है कि अद्यावधि जितने प्रशस्ति शिलालेख देखने में आये हैं, उनमें अलंकार शास्त्र का ऐसा नमूना नहीं मिलता है । मन्दिर का अन्य मुख्य आकर्षण प्रविष्ट होते ही चौक में एक भव्य २५ फीट ऊँचा कलात्मक तोरण द्वार है, जिस पर उत्कृष्ट कलाबिम्बों का रूपांकन हुआ है। मण्डप स्तम्भों की कुराई व गर्भगृह की सहस्रफण पार्श्वनाथ की श्याम मर्ति, जो कसौटी पत्थर की बनी हुई है, अपने आप में विलक्षण है। मति के ऊपर जड़ा हुआ हीरा, मूर्ति को अनेक रूपों में दर्शित करवाता है। मन्दिर में वह रथ अभी तक रखा हुआ है, जिस पर सेठ थारूशाह ने प्रभु-प्रतिमा को रखकर संघ के साथ सिंह क्षेत्र की यात्रा की थी। (३) बघेरा तीर्थ :
श्री शान्तिनाथ दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र बघेरा केकड़ी से १७ कि० मी० पूर्व में स्थित है। बघेरा शब्द 'व्याघ्र" (बाघ) से व्युत्पन्न है। इस गाँव की स्थापना व प्राचीन मानों के बारे में कई काल्पनिक आख्यान हैं ।२ वास्तव में यह ग्राम प्रतिहार वंशीय मिहिर भोज ( ८४३-८८१ ई० ) के शासनकाल में अस्तित्व में आया । प्राचीन सिक्कों से भी यह प्रमाणित होता है।४ ११६९ ई० के बिजौलिया अभिलेख में भी व्याघ्र रक ( बघेरा ) का उल्लेख है ।" यह “वराह नगर'' के नाम से भी प्रसिद्ध १. जैसलमेर दिग्दर्शन, पृ० ५६ । २. आसरि, ६, पृ० १३६ । ३. एसिटारा, पृ० ३२६ । ४. ओझा, बीकानेर राज्य, पृ० १००-१०१ । ५. एइ, २६, पृ० ८४ ।
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