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९७४ : मध्यकालीन राजस्थान में जेनधमं
(ञ) शांतिनाथ मन्दिर :
अचलगढ़ का चौथा जैन मन्दिर तीर्थकर शान्तिनाथ का है, जिसे कुमार पाल का मन्दिर भी कहा जाता है, यह अचलगढ़ की तलहटी में छोटी सी टेकरी पर बना हुआ है। जिनप्रभसूरि के "तीर्थं कल्प" में एवं सोमसुन्दरसूरिकृत " अर्बुद - गिरिकल्प" में इसे कुमारपाल निर्मित बताया गया है। पूर्व में यह महावीर मन्दिर था, किन्तु अब यह शान्तिनाथ का मन्दिर है, इस मन्दिर की प्रदक्षिणा की दीवार में जिन प्रतिमाएँ, आचार्यों · तथा साधुओं की मूर्तियों के अतिरिक्त पाँच पाण्डव, मल्लयुद्ध लड़ाई के दृश्य, सवारी तथा नाटक आदि के दृश्यों का उत्कीर्णन है । "
अचलगढ़ से १३२० ई० की ३६ श्लोक वाली गद्य में रचित प्रशस्ति प्राप्त हुई हैं, जो बहुत ही खण्डित अवस्था में है । इसमें चन्द्रावती, अर्बुद, शाकम्भरी, अपरांत आदि 'प्रदेशों का वर्णन, चौहान वंश के विभिन्न राजाओं के नाम, अर्बुद मण्डल की भौगोलिक तथा ऐतिहासिक स्थिति एवं अचलेश्वर मन्दिर के जीर्णोद्धार व उसकी पूजा के लिये टुण्डी ग्राम के दान का उल्लेख है । १४४९ ई० के अचलगढ़ के सुरह लेख में महाराणा कुम्भा के समय की कर व्यवस्था पर प्रभूत प्रकाश पड़ता है । इसमें उल्लेख है कि देलवाड़ा के मन्दिरों के लिये यात्रा करने वालों से मण्डपिका कर दांपा, बलावी, रखवाली करों को राणा कुम्भा ने माफ कर दिया है । आगे इसमें यह भी लिखा है कि इधर यात्रा करने वालों से एक-एक फदियाँ व चार दुगाणी, मन्दिर का भण्डारी वसूल करेगा ।
आबू तीर्थ के उक्त मन्दिरों ने जहाँ तक्षण कला में चार चाँद लगाये हैं, वहीं मन्दिरों की धातु प्रतिमाओं ने मध्यकाल की धातु ढलाई कला में कीर्तिमान स्थापित किया है । इस " कला तीर्थ" के स्थापत्य ने उत्तरी भारत की मन्दिर निर्माण कला को प्रभावित किया है, एवं शिलालेखों ने इतिहास के तिथिक्रम को सुदृढ़ आधार प्रदान "किया है । जैन तीर्थ होने के कारण १४वीं शताब्दी के उपरान्त कई आचार्यों और जैन विद्वानों ने इस तीर्थ के बारे में यहाँ रहकर विभिन्न स्तवन, स्तोत्र, चैत्य परिपाटियाँ, तीर्थं मालाओं आदि की रचना की । तेजपाल ने मन्दिर के प्रतिष्ठा समारोह की वार्षिकी उत्सव आदि के लिये विविध व्यवस्थाएँ कर रखी थीं । एतदर्थ ट्रस्टी नियुक्त थे, तथा विभिन्न समुदायों व गाँवों के निवासियों के कार्यादि भी सुरक्षा राजा सोमसिंह देव और उसके पुत्र काल्हड देव, समस्त स्थान पति भट्टारक एवं पड़ोस के सुपुर्द थी । राजा स्वयेम सिंह ने नेमिनाथ के पूजार्थं में दवाणि गाँव का
निर्धारित थे । 3 मन्दिर की
१. असावे, पृ० १८
२. राइस्त्री, पृ० १४२ ।
३. एइ, ८, पृ० २०४ |
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