________________
जैन तीर्थ : १६३ १. सिद्ध क्षेत्र या निर्वाण क्षेत्र-वे क्षेत्र जहां किसी तीर्थकर या मुनि का निर्वाण ही हुआ है।
२. कल्याणक क्षेत्र-जहाँ किसी तीर्थंकर का गर्भ, जन्म, दीक्षा और केवल्य ज्ञान कल्याणक हुआ हो।
३. अतिशय क्षेत्र या चमत्कारी तीर्थ-जहाँ किसी मन्दिर या मूर्ति में कोई चमत्कार दिखाई दे । सामान्यतः लोकभावना एवं अनुश्रुतियाँ ही इनकी मान्यता की कसौटी हैं। __मध्यकाल में तीर्थ यात्रा के लिये संघपति के नेतृत्व में, जैनाचार्यों के साथ, चातुर्विधसंघ यात्रायें हाथी, घोड़े, रथ, गाड़ी आदि के द्वारा सम्पन्न की जाती थीं। कभी-कभी इनका सम्पूर्ण व्यय बड़े श्रेष्ठियों के द्वारा भी वहन किया जाता था। राजस्थान में जैन तीर्थों का बाहुल्य देखने को मिलता है । अतः संघों द्वारा एक ही यात्रा-चक्र में विभिन्न तीर्थों के दर्शनों हेतु, छोटे क्षेत्रों के तीर्थों के समूह को 'पंचतीर्थी' की संज्ञा दे दी गई है। राजस्थान की कुछ पंचतीथियाँ निम्नलिखित हैं :
१. मारवाड़ को बड़ी पंचतीर्थी--इसका केन्द्र स्थल सादड़ी (मारवाड़) है । इसके अन्तर्गत रणकपुर, मुंछाला महावीर, नाडलाई, नाडौल और वरकाणा पार्श्वनाथ तीर्थ हैं।
२. मारवाड़ की छोटी पंचतीर्थी--आबू क्षेत्र में पिंडवाड़ा से मारवाड़ की छोटी और बड़ी पंचतीर्थी की जाती है । छोटी पंचतीर्थी में नाणा, दियाणा, नांदिया, वरमाण और अजारी तीर्थ हैं।
३. मेवाड़ की पंचतीर्थी--इसके अन्तर्गत केसरिया जी, नागदा, देलवाड़ा, दयालशाह का किला और करेड़ा तीर्थ माने जाते हैं।
४. जैसलमेर की पंचतीर्थी--इसके अन्तर्गत जैसलमेर, लुद्रवा, अमरसर, देवीकोट व बरसलपुर आते हैं।
राजस्थान में न तो सिद्ध क्षेत्र हैं और न कल्याणक क्षेत्र ही, केवल अतिशय व चमत्कारिक तीर्थ हैं । कुछ जैन स्मारक एवं मंदिर कलात्मक मान्यता एवं भव्यता के कारण "कलातीर्थ" की संज्ञा से भी विभूषित किये जाते हैं। साम्प्रदायिक सौहार्द्र के पूर्ण अभाव के कारण कुछ तीर्थों पर श्वेताम्बर व दिगम्बर में अधिकार को लेकर विवाद है, जैसे-केसरिया जी आदि ।
पूर्व मध्यकाल के कतिपय बहु-लोकमान्य तीर्थ या तो मुस्लिम विध्वंस का शिकार हो गये या कालगर्त में लुप्त हो गये । आस्थावान् जैनाचार्यों एवं श्रावकों ने कतिपय को पुनर्प्रतिष्ठित भी करवाया । राजस्थान के जैन तीर्थ, प्रभावना की दृष्टि से ही नहीं, अपितु जैन मन्दिर निर्माण कला, मूर्तिकला, स्थापत्य, विविध जिनायतनों, शिलालेखों, मूर्तिलेखों, विभिन्न स्मारकों, साहित्यिक केन्द्रों, शिक्षा केन्द्रों एवं शास्त्र भण्डारों के
१. जैसरा, पृ० १९६ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org