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१५४ : मध्यकालीन राजस्थान में जेजनमं
भी राजस्थान के ही किसी स्थान से उत्पन्न हुई होगी। राजस्थान में इस जाति के लोग डूंगरपुर, बाँसवाड़ा और प्रतापगढ़, जो कि प्राचीन बागड़ प्रदेश में हैं, पाये जाते हैं । ये दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में पाये जाते हैं ये अधिकांशतः काष्ठा संघ के भट्टारकों से सम्बन्धित रहे, न कि मूल संघ के साथ। यह जाति भी अन्य जातियों की तरह ८वीं शताब्दी में अस्तित्व में आई प्रतीत होती है । इस जाति के लोगों ने कई प्रतिमाओं और मन्दिरों के स्थापना समारोह सम्पन्न करवाये । झालरापाटन का प्रसिद्ध शान्तिनाथ जैन मन्दिर हुम्मड़ जाति के साह पीपा के द्वारा ही निर्मित बताया जाता है । "
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हुम्मड़ जाति कालान्तर में कई शाखाओं और गोत्रों में विभक्त हो गई । इस जाति की तीन शाखाएँ - लघु शाखा, बृहद शाखा व वर्षावत शाखा ज्ञात हुई हैं । वर्षावत शाखा संभवतः महारावल हरिसिंह के मन्त्री वर्षाशाह से उत्पन्न हुई | महारावल के आदेशानुसार उसने इस जाति के १००० परिवारों को सागवाड़ा से कोथल में आमन्त्रित किया । उसने देवलिया में दिगम्बर जैन मन्दिर का निर्माण कार्य भी प्रारम्भ करवाया । इसका स्थापना समारोह उसकी मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्र वर्धमान और दयाल के द्वारा १७१७ ई० में सम्पन्न हुआ । इस जाति के १८ गोत्र हैं : ३खेरजू, कमलेश्वर, ककड़ेश्वर, उत्तरेश्वर, मंत्रेश्वर, भीमेश्वर, भद्रेश्वर, गणेश्वर, विश्वेश्वर, संख्येश्वर, अम्बेश्वर, चांचनेश्वर, सोमेश्वर, रजीयानो, ललितेश्वर, कांसवेश्वर, बुधेववर और संघेश्वर ।
(११) धर्कट वंश :
दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में धरकट जाति के लोग पाये जाते हैं ! रामचन्द्र राय ने सवाई माधोपुर जिले में १०वीं शताब्दी के दिगम्बर मतानुयायी धर्कट - परिवारों द्वारा खुदवाये गये कुछ अभिलेख देखे थे । ४ " धम्म परीक्खा” के लेखक हरिषेण इस जाति के ही थे, जो १०वीं शताब्दी में हुये । " पश्चिमी राजस्थान में रहने वाले धर्कट परिवार अधिकांशतः श्वेताम्बर थे । १०वीं शताब्दी के मण्डोर म्यूजियम के एक अभिलेख में मारवाड़ के एक श्वेताम्बर धर्कट जैन परिवार का वर्णन है । मरुकोट का
१. अने०, १३, पृ० १२४ । २. वही, पृ० १२४ । ३. वही ।
४. वरदा, १४, अंक २, पृ० ५६ । ५. जैसाऔइ, पृ० ४६८ । ६. जैरा, पृ०५८ ।
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