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१५० : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म
(घ) पद एवं उपनामों पर आधारित गोत्र :
चौधरी की पदवी दी जाती
के
कुछ गोत्र पदवियाँ और उपनामों से भी उद्भूत हुए । साह गोत्र उन व्यक्तियों से उत्पन्न हुआ प्रतीत होता है, जिन्हें आदरणीय मान कर "साह" कहा जाता था । इस गोत्र के साह ने अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ १५३९ ई० में "अरहम यंत्र" की स्थापना की ।" इस गोत्र का नाम १५१८ ई० की प्रशस्ति में भी देखने को मिलता है । कर व लगान वसूल करने वाले लोगों को सरकार के द्वारा थी । कालक्रम में "चौधरी" गोत्र बन गया । इस गोत्र साह महाराजा ने १५५४ ई० में "पार्श्वनाथ चरित्र" की प्रतिलिपि तैयार करवा कर धर्मचन्द्र को भेट में दी 13 छावड़ा गोत्र सम्भवतः साह व बड़ा शब्दों के मिलने से अस्तित्व में आया । पहले यह शब्द "साबड़ा" रहा होगा, किन्तु समय के अन्तराल से छाबड़ा हो गया । इस गोत्र के साहमोटा ने “नागकुमार चरित्र" की प्रति तैयार करवा कर ललितकीर्ति को भेंट में दी थी । १५९१ ई० के एक अभिलेख में भी इस गोत्र का उल्लेख है ।" " भैंसा" गोत्र सम्भवतः भाई व साह शब्दों के मिलने से निर्मित हुआ होगा । इसका उल्लेख १६९४ ई० की प्रशस्ति में है । जब इस गोत्र के लोग संख्या में अधिक हो गये तो बड़जात्या कहलाने लगे । वर्तमान समय में दोनों गोत्र एक ही माने जाते हैं । सेठी गोत्र श्रेष्ठी शब्द से उत्पन्न हुआ । प्राचीन जैन साहित्य में यह शब्द बहुधा प्रयुक्त हुआ है । इस गोत्र का उल्लेख १५७५ ई० की एक प्रशस्ति में भी है । उपरोक्त गोत्रों के अतिरिक्त कुछ अन्य गोत्रों की जानकारी अभिलेखों व प्रशस्तियों से मिलती है । १४७३ ई० के अभिलेख में गोधा गोत्र का सर्वप्रथम उल्लेख मिलता है । इसके अनुसार इस गोत्र के विल्हण ने प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह सम्पन्न किया था ।" अन्य गोत्रों में ठोलिया गोत्र, पहाड़िया गोत्र १०, बिलाला गोत्र ", गंगवाल गोत्र १२, गोदिका गोत्र १३, पांड्या गोत्र ४,
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१. जैइरा, पृ० ८० ।
२. प्रस, पृ० ६३ । ३. जैसंशि, पृ० १२८ ।
४. वही, पृ० ११३ ।
५. जैइरा, पृ० ८१ ।
६. प्रस, पृ० २९ ।
७. वही, पृ० १९० । ८. वीरवाणी, भाग ७ ।
९. जैइरा, पृ० १२ ।
१०. वही, पृ० १०५ । ११. वही
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१२. प्रस, पृ० ९९ । १३. प्रस, पृ० १६९ १४. वही, १७० ।
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