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जैनधर्म भेद और उपभेद : १४९
एक प्रशस्ति में देखने को मिलता है ।" पाटनी गोत्र खण्डेला के निकट पाटन नामक गाँव से प्रारम्भ हुआ । इस गोत्र की नागौर निवासी पहराज की पत्नी पाटनदे ने १५२० ई० में " आदि पुराण" की एक प्रति धर्मचन्द्र को भेंट में दी । २ १५९४ ई० के अभिलेख में भी इस गोत्र का उल्लेख है । 3 टोंगिया गोत्र सम्भवतः टोंक में उत्पन्न हुआ । इसका उल्लेख १५२२ ई० की प्रशस्ति में मिलता है । काला गोत्र जयपुर राज्य में चौमूं के निकट काला देवा नामक स्थान से उत्पन्न हुआ प्रतीत होता है । १५७६ ई० में इस गोत्र के रोहों ने एक प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई थी ।" १६०७ ई० की एक प्रशस्ति में भी इस गोत्र का उल्लेख है ।
(ग) व्यावसायिक गोत्र :
कतिपय गोत्र व्यवसायों के आधार पर विकसित हुये । औषधियों का व्यापार करने वाले व्यक्ति और उनके वंशज कालान्तर में वैद गोत्र के हुये । १५८४ ई० में इस गोत्र के मोथा ने अपनी पत्नी और पुत्रों के साथ " सम्यक् दर्शन यन्त्र” की स्थापना की थी । परम्परागत अनुश्रुतियों से स्पष्ट है कि मोहनाय बज और आम्नाय बज धर्मान्तरण के पूर्व सुनार थे । १६४६ ई० में बज गोत्र के हाथीनाथ ने " दसलक्षण यंत्र" की प्रतिष्ठा आयोजित की ।" १६८८ ई० को प्रशस्ति में भी इस गोत्र का उल्लेख है । सोनी गोत्र भी लोगों के व्यवसाय की तरफ इंगित करता है । इसका सर्वप्रथम उल्लेख १५८४ ई० के अभिलेख में मिलता है, जिसके अनुसार इस गोत्र के साहतेला ने " करकुंद पार्श्वनाथ यंत्र" को स्थापना की थी । १६८८ ई० की एक प्रशस्ति में भी इस गोत्र का उल्लेख है । १० बोहरा गोत्र धन उधार देने वाले लोगों से उत्पन्न हुआ । इस गोत्र के रत्न ने १४८४ ई० में अपने पुत्रों के साथ एक यंत्र की प्रतिष्ठा करवाई थी । "
१. प्रस, पृ० ९६ ।
२. वही, पृ० २ ।
३. जैइरा, पृ० ८१ ।
४. प्रस, पृ० १७७ ।
५. जैइरा, पृ० ७९ ।
६. प्रस, पृ० ८९ ।
७. जैइरा, पृ० ८१ ।
८. संवत् १७०३ वैशाख मासे प्रतिष्ठताम -- बड़ा श्री हाथीनाथ प्रणमति ।
९. जैइरा, पृ० ८१ ।
१०. प्रस, पृ० ४ । ११. जैइरा, पृ० ८१ ।
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