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________________ १४६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म गोलनच्छी के परिवार का भीनमाल से प्रवास का उल्लेख मिलता है। विमलशाह भी इसी जाति के थे एवं रणकपुर मन्दिर के निर्माता धरणाशाह भी इसी जाति के थे। श्रीमाल जाति की तरह पोरवाल जाति भी लघु शाखा और बृहद् शाखा में विभक्त थी, पोरवाल जाति की लघु शाखा का १६५३ ई० के अभिलेख में उल्लेख है ।२ १५३४ ई० में प्राग्वाटजातीय बृहद् शाखा के मंत्री विकास ने सुमतिनाथ की प्रतिमा स्थापित की थी। - ___ अभिलेखीय एवं साहित्यिक प्रमाणों के आधार पर पोरवाल जाति के विभिन्न गोत्र देखने को मिलते हैं। जैसे-झूलर, मुन्थालिया, लिम्बा, मंडालिया, पटेल, नरवत, लोलानिया, पोसा, कोठारी, भण्डारी, अम्बी, कोडकी और नाग । १५४६ ई० में पोरवाल जातीय कोठारी गोत्र के तेजपाल, रायपाल, रत्नसी और रामदास ने सिरोही राज्य के पिंडवाड़ा में महावीर मन्दिर का निर्माण करवाया था। १४४७ ई० में इस जाति के भण्डारी गोत्र के शान्ति ने मुनि सुव्रतनाथ को प्रतिमा स्थापित करवाई थी। १५७१ ई० में अम्बई गोत्र के व्यवहारी खीमा ने धर्मनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई। १५८६ ई० में कौडकी गोत्र के मूल ने तपागच्छीय विजयसेन सूरि से आदिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित करवाई थी। कुछ गोत्र ख्याति प्राप्त पूर्वजों से भी उद्भूत हुये, जैसे-साहिलसन्तानिया (साहिल के वंशज) इसी प्रकार का गोत्र है।' (४) पल्लीवाल : दिगम्बर एवं श्वेताम्बर दोनों सम्प्रदायों में पायी जाने वाली पल्लीवाल जाति सम्भवतः मारवाड़ के पाली नामक स्थान से उत्पन्न हुई। पाली का प्राचीन नाम पल्लिका था। ऐसा माना जाता है कि ८वीं शताब्दी में रत्नप्रभ सूरि द्वारा यहाँ के लोगों को जैन धर्म में धर्मान्तरित किया गया और पल्लीवाल जाति की स्थापना हुई। पल्लीवालों द्वारा समय-समय पर मूर्तियों के प्रतिष्ठा महोत्सव आयोजित करने के प्रमाण १. अप्रजैलेस, क्र० ६२१ । २. नाजलेस, क्र० १६१४ । ३. वही, क्र० २१५१ । ४. श्री जैन गोत्र संग्रह, भूमिका, पृ० ५० । ५. नाजैलेस, क्र० ९४७, ९४८, ९५० । ६. वही, ६२१ । ७. वही, १२१४। ८. वही, १३०८। ९. अप्रजैलेस, क्र० २४३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org:
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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