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________________ जैनधर्म भेद और उपभेद : १३९, विरमेचा, हरखावत, साह और भल्लावत गोत्र उत्पन्न हुये।' १४४४ ई० में लालाणी गोत्र के जयवद ने अंचलगच्छ के जयकेश सूरि के माध्यम से धर्मनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई।२ १४१९ ई० में बाठिया गोत्र के साह व्हामा ने जिनचन्द्र सूरि के माध्यम से जिनवरेन्द्र पट्ट का समारोह करवाया । अनुश्रुति के अनुसार गदासाह के वंशज गया कहलाये । १४११ ई० में इस गोत्र के साह आना ने अपनी पत्नी की स्मृति में उपकेश गच्छीय देवगुप्त सूरि से शान्तिनाथ प्रतिमा का प्रतिष्ठा समारोह सम्पन्न करवाया ।" लूणिया गोत्र का नाम लूणसिंह के नाम पर हुआ, जिसने जिनदत्त सूरि से जैनमत स्वीकार किया था। १४५६ ई० में इस गोत्र के गेशक ने खरतरगच्छीय जिनभद्र सूरि से पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई थी।६ ११४८ ई० में हेमचन्द्र सूरि के उपदेश से पंवार राजपूत जगदेव, जैन मत में दीक्षित हुआ।७. जगदेव के दो पुत्र सूर व सांवल थे । सूर के वंशज सुराणा और सांवल के वंशज सांखला कहलाये । १४४४ ई० में सुराणा गोत्र के सोनपाल ने धर्मघोष गच्छ के विजयचन्द्र सूरि से सुमतिनाथ की प्रतिष्ठा करवाई थी।९ १४३८ ई० में सांखला गोत्र के लाखा ने विजयचन्द्र सूरि से ही सुमतिनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाई थी।१०।। दुगड़ और सुगड़ नाम के दो भाइयों ने जिनचन्द्र सूरि से जैन मत स्वीकार किया था।' दुगड़ के वंशज दुग्गड़ और सुगड़ के वंशज सुग्गड़ कहलाये । १४६० ई० में इस गोत्र के वंशज नागराज में रुद्रपल्ली गच्छ के सोमसुन्दर से श्रेयांसनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा सम्पन्न करवाई थी।१२ देलवाड़ा के राजा सागर के पुत्र बोहित के नाम पर बोथरा गोत्र उत्पन्न हुआ। 13 इसकी कई शाखाएँ हुईं, जैसे--बोहिथरा, फोफलिया, १. जैसंशि, पृ० ६२६ । २. नाजलेस, क्र० २३१७ । ३. वही, क्र० २४०४ । ४. जैसंशि, पृ० ६२८ । ५. नाजैलेस, क्र० १०६२ । ६. जैसंशि, पृ० ६३५-३७ । ७. नाजैलेस, क्र० २१८६ । ८. जैसंशि, पृ० ६३७ । ९. नाजैलेस, क्र० १०७९ । १०. वही, क्र० १८७७ । ११. जैसंशि, पृ० ६३८ । १२. नाजैलेस, क्र० १२६७ । १३. जैसंशि, पृ० ६३९-६४१ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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