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________________ १३८ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म महाजन व्यवसाय से इसी प्रकार घी का व्यापार करने वाले व्यक्ति और उनके वंशज घिया कहलाये । १५६९ ई० में इस गोत्र के नरबद ने तपागच्छ के हीर विजय के आदेशानुसार संभवनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई थी । अनुश्रुति के अनुसार वैद्य गोत्र के किसी पूर्वज ने उदयपुर की किसी रानी की आँख का इलाज किया था, अतः उन्हें व उनके वंशजों को वैद्य गोत्र की संज्ञा दी गई । २ १४५५ ई० में इस गोत्र के भादाक ने उपकेश गच्छीय कुकड़ाचार्य के द्वारा विमलनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई थी । महाजनी गोत्र उदित हुआ । इस गोत्र के नाल्हा ने कक्क सूरि के माध्यम से शांतिनाथ की प्रतिमा १४५७ ई० में प्रतिष्ठित करवाई थी । ओसवालों में चाण्डालिया और बाम्बी गोत्र भी पाये जाते हैं । चूँकि इनका व्यवसाय चाण्डालों और बाम्बियों के साथ था, अतः उनका गोत्र यही हो गया । १७४५ ई० में चण्डालिया गोत्र के रतनपाल ने मलधारी गच्छ के पुण्यनिधान सूरि के माध्यम से अपने पिता की स्मृति में सुविधिनाथ की प्रतिमा स्थापित करवाई थी । " (ग) व्यक्तियों के नामों पर आधारित गोत्र : कतिपय गोत्रों का नामकरण प्रसिद्ध व्यक्तियों के नामों पर हुआ । राठौड़ राव रायपाल के पुत्र छाजड़ के वंशज छाजेड़ जैन ओसवाल कहलाये । राव रायपाल के दूसरे पुत्र मोहण के वंशज मुहणोत ओसवाल कहलाये । मुहणोत नैनसी इसी वंश के थे । आदित्यनाग गोत्र की उत्पत्ति प्रसिद्ध व्यक्ति आदित्यनाग के नाम पर हुई, जो महान दानी, उदार और परोपकारी था । इस गोत्र के उल्लेख के १४वीं १५वीं और १६वीं शताब्दी के कई उल्लेख जोधपुर, नागौर, बालोतरा आदि स्थानों पर पाये गये हैं ।" १११० ई० में पंवार राजपूत लालसिंह के नाम पर जिनवल्लभ सूरि ने लालाणी गोत्र स्थापित किया । लालसिंह के ७ पुत्र थे जिनमें सबसे बड़ा बाठा बहुत शक्तिशाली था और उससे बाठिया गोत्र की उत्पत्ति हुई । लालसिंह के अन्य चार पुत्रों के नाम से १. नाजैलेस, ३, क्र० ५३७२ । २. औजाइ, पृ० १६६ । ३. नाजैलेस, १, क्र० २३३४ । ४. वही, क्र० २५७७ । ५. जैइरा, पृ० ९६ ॥ ६. आसोपा, मारवाड़ का मूल इतिहास, पृ० ७६ । ७. वही । ८. नाजैलेस, १ एवं २ | ९. जैसंशि, पू० ६२६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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