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________________ १३६ : मध्यकालीन राजस्थान में जैनधर्म को जैन मत में दीक्षित किये गये जन समूहों के माध्यम से नये गोत्रों का सृजन करते रहे । प्रारम्भ में ओसवाल जाति के कुल अठारह गोत्र थे, जो इस प्रकार हैं तातहड़, बाफना, करणाट, बलहारा, मोराक्ष, कूलहट, बिरहट, श्री श्रीमाल, श्रेष्ठी, सुचिन्ती आइचनांग, भूरि, भाद्र, चिंचट, कुम्मट, डिन्डू, कनौज और लघु श्रेष्ठी। इन अठारह गोत्रों से कालान्तर में अनेक शाखाएं निकलीं, जिनकी संख्या इस प्रकार है तातेड़ से २२, बाफना से ५२, करणाट से १४, बलहारा से २६, मोराक्ष से १७, कुलहट से १८, बिरहट से १७, श्री श्रीमाल से २२, श्रेष्ठी से ३०, संचेती से ४४, आदित्यनाग से ८५, भूरि से २०, भद्र से २९, चिंचट से १९, कुम्मट से १९, डिन्डू से २१, कनौजिया से १७ और लघु श्रेष्ठी से १६ । इस प्रकार कुल ४९८ गोत्र हुये । यह भी कहा जाता है कि ओसवालों के १४४४ गोत्र हैं, वस्तुतः ये गोत्र नहीं हैं, अपितु शाखाएँ व उपशाखाएँ हैं । यति श्रीपाल की पांडुलिपि के अनुसार ६०९ गोत्र वणित हैं । १८वीं शताब्दी के कवि रूपचन्द्र ने अपनी पुस्तक "ओसवाल रास" में ४४० गोत्रों का वर्णन किया है।४ इन बहुसंख्यक गोत्रों में से कुछ स्थानाधारित, कुछ व्यक्ति निष्ठ और कुछ व्यवसायिक हैं । (क) क्षेत्रीय-प्रादेशिक या स्थानिक गोत्र : कुछ गोत्र उत्पत्ति स्थान के आधार पर नामांकित किये गये । १११६ ई० में जिनदत्त सूरि ने जैसलमेर के भंडसाल के भाटो रावल सागर के दो पुत्रों-श्रीधर और राजधर को वासक्षेप देकर महाजन वंश और भंडसाली गोत्र में स्थापित किया, जिससे भंसाली गोत्र अस्तित्व में आया ।५ १५४२ ई० में इस गोत्र के साह वीद्रक ने जैसलमेर में चन्द्रप्रभु की प्रतिष्ठा समारोह जिनप्रभ सूरि के द्वारा आयोजित करवाया था। सिरोही के कांछोला गाँव के आधार पर १३वीं शताब्दी के प्रारम्भ में कांछोली गोत्र निर्मित हुआ । १२८६ ई० में इस गोत्र के अजयसिंह ने स्थानीय मन्दिर में पार्श्वनाथ प्रतिमा स्थापित करवाई थी। मारवाड़ के कोरंत नामक स्थान से कोरंत गोत्र उत्पन्न १. जैसंशि, पृ० ६२० । २. ज्ञान सुन्दर, जैन जाति महोदय, पृ० २५ । ३. जैसंशि, पृ० ६५६ । ४. जैन भारती, ११, सं० ११ । ५. नाजैलेस, ३, पृ० २८ । ६. वही, क्र० २३२८ । ७. अप्रजलेस, क्र० ६११ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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