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________________ जैनधर्म भेद और उपभेद : १३१ यह पंथ राजस्थान के कई भागों विशेषतः जयपुर, मारोठ, भादवा आदि क्षेत्रों में फैला । ३. तोतापंथी वर्ग-बीस पंथ और तेरापंथ के संघर्ष के परिणामस्वरूप इस पंथ का उदय हुआ। बीस पंथ और तेरापंथ में समझौते के कई प्रयास किये गये, जिससे यह मध्य मार्ग अर्थात् साढ़े सोलह पंथ या तोतापंथ पैदा हुआ। इस पंथ के अनुयायी बीस पंथ और तेरापंथ दोनों के थोड़े-थोड़े सिद्धान्त मानते हैं । यह वर्ग केवल नागौर तक ही सोमित रहा। निष्कर्ष एवं समालोचना : १. श्वेताम्बर सम्प्रदाय के पूर्वोक्त गच्छ भेदों के अध्ययन से ज्ञात होता है कि ये मूलतः निम्न कारणों से अस्तित्व में आये : (क) प्रान्तों या क्षेत्रों के नाम पर, जैसे-गुजरातो लोंका आदि । (ख) स्थानों के नामों के आधार पर, जैसे-मदार से मदाहड गच्छ, नाणा से नाणावाल गच्छ, काछोली से काछोली गच्छ, भीनमाल से भीनमाल गच्छ, पाली से पल्ली गच्छ आदि । (ग) जातियों के आधार पर, जैसे-ओसवाल गच्छ, पल्लीवाल गच्छ, हुँबड गच्छ आदि । (घ) संस्थापक आचार्यों के नाम पर, जैसे-देवाचार्य गच्छ, धर्मघोष गच्छ, धनेश्वर गच्छ, लोंका गच्छ आदि । (ङ) विशिष्ट घटना या संयोग से उद्भूत, जैसे-वड गच्छ, तपा गच्छ, खरतर गच्छ आदि । (च) विशिष्ट धार्मिक संस्कारों के आधार पर, जैसे-अंचल गच्छ, विधि पक्ष, आगमिक गच्छ आदि । - २. गच्छों का निर्माण व साम्प्रदायिक विभेद की प्रक्रिया पूर्व मध्यकाल में प्रारम्भ हुई, जो निरन्तर वृद्धिशील रही। इस काल में गच्छोल्लेख के अभिलेखीय प्रमाण कम उपलब्ध होते हैं, अतः यह गच्छों का उत्पत्ति काल रहा। ३. मध्यकाल में १३वीं से १६वीं शताब्दी तक गच्छों के विपुल अभिलेखीय प्रमाण उपलब्ध होते हैं, जिससे सिद्ध होता है कि इनके अनुयायी अधिक संख्या में थे तथा ये लोकप्रिय भी थे । गच्छों की अधिक संख्या यह इङ्गित करती है कि राजस्थान में जैन मतावलम्बो अधिक संख्या में थे, तभी इतने गच्छभेद पोषित होते रहे और जीवित रह सके । यह गच्छोत्कर्ष काल रहा । ४. मध्यकाल में उत्पन्न लोंका गच्छ अत्यधिक लोकप्रियता के कारण पृथक पंथ ही बन गया जबकि इसी से पृथक हुआ "बीजा मत" विजय गच्छ के रूप में सीमित हो गया। मुस्लिम विध्वंस व धर्मान्तरण के कारण शताब्दियों से चली आ रही मूर्तिपूजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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