________________
जैनधर्म भेद और उपभेद : १२९ के द्वारा छीहद और सगमल नामक श्रावकों ने करवाया ।' १७२६ ई० में बाँसखोह नामक स्थान पर हृदयराम द्वारा प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह इन्हीं की प्रेरणा से आयोजित किया गया ।
देवेन्द्र कीर्ति के पश्चात् महेन्द्र कीर्ति ने सांगानेर से अपनी पीठ आमेर में स्थापित की। इनके भक्तों ने १७३६ ई० में "जम्बू स्वामी चरित्र" और १७४१ ई० में त्रिलोकदर्पण' को प्रतिलिपियाँ तैयार करवाई। १७६९ ई० में सवाई माधोपुर में सुरेन्द्र कीर्ति के उपदेशों से संघो नन्दलाल द्वारा बड़े पैमाने पर प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह आयोजित हुआ। मूल संघ के नागौर पट्ट के भट्टारक यशकीर्ति के उपदेश से १६०४ ई० में रेवांसा में आदिनाथ मन्दिर रायसाल के प्रधानमन्त्री देवीदास के दो पुत्रों, साह जीतमल और नथमल ने बनवाया था। १६१५ ई० में रेवांसा के पंचों द्वारा यशकीर्ति को एक सिंहासन भेंट में दिया गया था। १६९४ ई० में अजमेर पट्ट के रत्नकीति के उपदेश से जोबनेर में संघी जेसा के द्वारा प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह इन्हीं के द्वारा करवाया गया। १७३७ ई० में रामसिंह द्वारा आचार्य अनन्तकीर्ति से प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह आयोजित करवाया गया। १७९५ ई० में धर्मदास ने भट्टारक भुवनकीर्ति से बड़े पैमाने पर प्रतिमाओं का प्रतिष्ठा समारोह सम्पन्न करवाया।"
केसरियाजी तीर्थ पर मूल संघ के भट्टारकों की गादी रही है। इस मन्दिर में मूल संघ के आचार्यों ने अनेकों मूर्तियों की प्रतिष्ठा करवाई। यह तथ्य १६५४ ई०, १६८५ ई०, १६८९ ई०, १७१० ई०, १७११ ई०, १७१२ इं०, १७१६ ई० और १८०६ ई० की मूर्तियों के लेखों से ज्ञात होता है ।१२
१. जैइरा, जयपुर चौधरी मन्दिर का लेख । २. वही, पृ० ८४ । ३. प्रस, पृ० ४८ एवं ५६ । ४. वही, पृ० २१४ । ५. वही, पृ० २१९ । ६. जैइरा, पृ० ८४ । ७. एरिराम्यूअ, १९३४-३५ । ८. जैइरा, पृ० ८५ । ९. वही, पृ० ४८। १०. वही, पृ० ४३ । ११. वही, पृ० ८६ । १२. भादिजैती, पृ० १२४ ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org