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________________ जैनधमं भेद और उपभेद : १२३: इस शाखा का उल्लेख १७वीं - १८वीं शताब्दी में जैसलमेर क्षेत्र में देखने को मिलता है । ९. ब्रह्माण गच्छ-- राजस्थान में इस गच्छ के उल्लेख के १६०६ ई० तक के अभिलेख प्राप्त हुए हैं । १०. रुद्रपल्लीय गच्छ - - खरतर गच्छ की इस शाखा का उल्लेख १७वीं शताब्दी अभिलेखों से भी प्राप्त होता है । अ ११. चैत्र गच्छ--- इसके नामोल्लेख के अभिलेख १७वीं शताब्दी के भी प्राप्त होते हैं । बाद में इस गच्छ की २ शाखाएँ शार्दूल शाखा और राज गच्छ अन्वय हो गईं । " १२. पालिकीय गच्छ - - पाली से उत्पन्न इस गच्छ का उल्लेख १६८६ ई० के अभिलेख में भी है । ૬ १३. विवन्दनिक गच्छ - - इसका नाम द्विवन्दनिक भी मिलता है । १७वीं व १८वीं शताब्दी के अभिलेखों में भी इसका उल्लेख है । १४. लघुपोसाल गच्छ——- देवेन्द्र सूरि द्वारा प्रवर्तित इस गच्छ का नामोल्लेख १७५८ ई० के अभिलेख में है । " १५. खरतर पिप्पल गच्छ-- खरतर गच्छ की इस शाखा का उल्लेख १७९७ ई० के एक अभिलेख से प्राप्त होता है । " १६. आचार्य गच्छ-- १८६६ ई० के जैसलमेर से प्राप्त लेख में इसका वर्णन है । १°यह भी खरतर गच्छ की एक शाखा थी । (क-२) नवीन सम्प्रदाय व पंथ : स्थानक वासी पंथ -- लोंका पंथ की स्थापना के ८ पाट तक मुनियों का शुद्धाचरण. चलता रहा । ये मुनि क्रमेण भाणा, भीदा, नूणा, भीमा, जगमाल, रिख सखोजी, . रूपजी और जीवाजी रहे । १७वीं शताब्दी के अन्त में आचरण शैथिल्य प्रारम्भ हो १. नाजैलेस, भाग ३ | २. वही, भाग २, क्र० २०९७ । ३. वही, क्र० २०२९ । ४. ए २२, पृ० २९१ । ५. जैसेस्कू, पृ० ६२ । ६. नाजैलेस, भाग १, क्र० ८२५ । ७. वही, भाग २, क्र० १६५८ । ८. जैसेस्कू, पृ० ६७ । ९. नाजैलेस, भाग २, क्र० १८२८ । १०. वही, भाग ३, क्र० २४४५ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002114
Book TitleMadhyakalin Rajasthan me Jain Dharma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRajesh Jain Mrs
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1992
Total Pages514
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Art
File Size21 MB
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